ज्योतिष ज्ञान में सीखें ज्योतिष: कुण्डली में सूर्य और केतु की युति
ज्योतिष ज्ञान: राम राम जी जैसा कि आप सभी जानते है कि हम हर हफ्ते के ज्योतिष ज्ञान आप सभी के लिए ज्योतिष से जूड़े विशेष ज्ञान कुछ ना कुछ लाते हैं ठीक हर हफ्ते रविवार की तरह ज्योतिष ज्ञान में वृद्धि के लिए आज ज्योतिष ज्ञान का विषय है सूर्य और केतु का युति…
जैसा कि प्रत्येक रविवार को ज्योतिष ज्ञान में हम सब सीखते हैं किसी विषय को लेकर वहीं ज्योतिष ज्ञान के आज का विषय केतु और सूर्य का साथ होना। पहले जाने ग्रहों की प्रवित क्या है।

सूर्य और केतु का युति
जैसे सूर्य राजा होता है शासन प्रशासन में सहयोग रखता नेतृत्व क्षमता विकसित रहती है। वहीं केतु पूर्व जन्म भूत काल का सूचक होता है यह अमर है इसको पूर्व जन्म याद है पर सिर विहीन होने के कारण इसके पास शरीर है केवल धड़ श्री हरि के चरणों में गिर गया है। जाने अनजाने में समर्पित हो गया है श्री हरि के द्वारा मारे जाने पर इसका मोक्ष हो गया है यह मोक्ष की बात करता है। जिसके पास जो ज्ञान रहता उसी की बात करता अपने साथी को उसी की ओर ले जाता।
आप सब को मालूम है समुद्र मंथन के समय सूर्य भानु नामक राक्षस अमृत पी लिया था उसको सूर्य और चंद्रमा ने देख लिया था श्री हरि विष्णु को बताया स्वयं नारायण ने चक्र से राक्षस का सिर काट दिया सिर तो दूर जा कर गिरा पर धड़ श्रीहरि के चरणों में स्थान पाया उसका मोक्ष हो गया वह अच्छी संगत में रहकर ज्ञान वैराग्य में रहता है इसी की वृद्धि करता है।
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जब वह सूर्य राजा का साथ पाता है जो तेजस्वी नेतृत्व वाला शासक है तो केतु का युति राजा को बैरागी बना देता है चाहे कोई भी रास्ता अपनाना है। जैसे राजा भरथरी को वैराग्य दिया बुध को राज छोड़कर वैराग्य दिया। ऐसे अनेक उदाहरण हैं कोई बड़ा राज्य छोड़ा कोई छोटा राज्य छोड़ा पर पाराशर ऋषि कहते है फलदीपिका नामक ग्रन्थ में केतु और सूर्य राजा जनक के तरह त्यागी बैरागी बना रहना यह केतु सूर्य का साथ का फल होता हैं। यह बड़ा गूढ़ विषय है जानना बिना गुरु कृपा से मिलती कहा है। गुरु ही अंगुलि पकड़ कर बताता है उसके लिए गुरु को प्रणाम।