सैफ अली खान की 15000 करोड़ की प्रॉपर्टीज ‘एनिमी प्रॉपर्टी’ करार, फिर होगी सुनवाई
Bhopal Ke Nawab: सैफ अली खान को करोड़ों की प्रॉपर्टीज को लेकर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से झटका लगा हैं। MP हाइकोर्ट ने सैफ की 15000 करोड़ की भोपाल में मौजूद पटौदी खानदान की प्रॉपर्टीज को ‘एनिमी प्रॉपर्टी’ करार दे दिया है। जानकारी के लिए बतादें कि सैफ खान के बचपन का घर फ्लैग स्टाफ हाउस भी इस प्रापर्टी में शामिल हैं। बताते चले कि अदालत ने ट्रायल कोर्ट का 25 साल पुराना फैसला रिजेक्ट करते हुए मामले की सुनवाई फिर से किए जाने का आदेश दिया है।

दुश्मन की संपत्ति घोषित
आपको बतादें कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने निचली अदालत के उस फैसले को रद्द कर दिया है जिसमें सैफ अली खान और उनके परिवार को संपत्ति का वारिस माना गया था। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने उनकी करीब ₹15,000 करोड़ की पारिवारिक संपत्ति को ‘दुश्मन की संपत्ति’ घोषित कर दिया है, क्योंकि एक वारिस विभाजन के समय पाकिस्तान चला गया था।
Read More: यूपी में धर्मांतरण रैकेट का हुआ खुलासा, छांगुर बाबा कराते थे धर्म परिवर्तन
एक्टर सैफ अली खान को एमपी हाई कोर्ट से झटका लगा है। नवाबी परिवार की संपत्ति को लेकर कोर्ट ने निचली अदालत के उस फैसले को रद्द कर दिया है जिसमें सैफ और उनकी फैमिली को उत्तराधिकारी बताया गया था। इसके अलावा सैफ की लगभग 15000 करोड़ रुपए की संपत्ति को दुश्मन की संपत्ति घोषित कर दिया गया है। ये फैसला शत्रु संपत्ति अधिनियम के तहत किया गया है, जिसके अनुसार अगर कोई व्यक्ति विभाजन के समय पाकिस्तान चला गया, तो भारत में उसकी संपत्तियां सरकार के अधीन हो जाती हैं। इन संपत्तियों में शामिल हैं: सैफ का बचपन का घर फ्लैग स्टाफ हाउस, भव्य नूर-अस-सबाह पैलेस, दार-अस-सलम, हबीबी का बंगला, अहमदाबाद पैलेस और कोहेफिजा की प्रॉपर्टी।

ट्रायल कोर्ट को दोबारा सुनवाई शुरु करने का आदेश
बताते चले कि ट्रायल कोर्ट के फैसले के मुताबिक ये प्रॉपर्टी साजिदा सुल्तान को दी गई थी, साजिदा नवाब हमीदुल्लाह खान की पहली बीवी की बेटी और सैफ की परदादी हैं। लेकिन 1960 में नवाब हमीदुल्लाह खान के वारिस मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एक्ट, 1937 के मुताबिक इन निजी संपत्तियों का बंटवारा चाहते थे, जो तत्कालीन नवाब की मृत्यु के समय लागू था। ऐसे में उन्होंने 1999 में ट्रायल कोर्ट का रुख किया था लेकिन तब ट्रायल कोर्ट ने साजिदा के हक में फैसला दिया था।
फिलहाल हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को दोबारा सुनवाई शुरू करने का आदेश दिया है। भोपाल के शाही परिवार की संपत्ति को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। इस विवाद में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने निचली अदालत के उस फैसले को रद्द कर दिया है जिसमें अभिनेता सैफ अली खान, उनकी बहनें सोहा अली खान और सबा अली खान, और उनकी मां शर्मिला टैगोर को भोपाल की संपत्तियों का वारिस माना गया था।
नवाब हमीदुल्लाह खान की फैमिली ट्री

नवाब हमीदुल्लाह खान की तीन बेटियां थीं। एक बेटी, आबिदा सुल्तान, पाकिस्तान चली गई थीं। बाकी दो भारत में ही रहीं। सैफ की दादी, साजिदा सुल्तान, उन्हीं में से एक थीं, जो भारत में रहीं। अब सरकार यह कह रही है कि क्योंकि एक वारिस पाकिस्तान चला गया था, इसलिए ये संपत्ति दुश्मन की संपत्ति बन जाती है।
क्या होती है शत्रु संपत्ति?
शत्रु संपत्ति में ऐसी संपत्तियों को रखा गया है जो उन लोगों की होती है जो पाकिस्तान चले गए हैं और भारत की नागरिकता छोड़ दी। 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद, भारत सरकार ने 1968 में शत्रु संपत्ति अधिनियम बनाया, जिसके तहत ऐसे प्रवासी नागरिकों की संपत्तियां कस्टोडियन ऑफ एनेमी प्रॉपर्टी नामक संस्था के अधीन आ गईं। इन संपत्तियों में जमीन, मकान, सोना-चांदी, गहने, और कंपनियों में शेयर जैसी चल और अचल संपत्तियां शामिल हैं। भारत सरकार ने इन संपत्तियों को अपने नियंत्रण में लेने के लिए शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 (Enemy Property Act, 1968) लागू किया।
Read More: फिल्म Ramayana का फर्स्ट लुक आउट, जानें स्टार कास्ट और बजट की जानकारी
शत्रु संपत्ति कानून कब और क्यों लाया गया?
शत्रु संपत्ति कानून इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान वर्ष 1968 में लागू हुआ था। यह कानून 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद बनाया गया, जिसका मकसद उन संपत्तियों को नियंत्रित करना था, जो पाकिस्तानी नागरिकों के नाम पर भारत में छूट गई थीं। इसके बाद 1962 में भारत-चीन युद्ध हुआ तो उसमें भी इस कानून को लागू किया गया, ताकि चीनी नागरिकों की संपत्तियों को भी शामिल किया जा सके।

1965 और 1971 के युद्धों के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच ताशकंद घोषणा में यह सहमति हुई थी कि दोनों देश एक-दूसरे की जब्त की गई संपत्तियों को लौटाने पर विचार करेंगे। हालांकि, 1971 में पाकिस्तान ने इन संपत्तियों को नष्ट कर दिया, जिसके बाद भारत ने भी इन संपत्तियों को अपने नियंत्रण में रखने का फैसला किया। इस कानून का मकसद था कि भारत के ‘दुश्मन’ देशों में चले गए लोगों की संपत्तियों को देश के हित में सुरक्षित रखा जाए और उनका प्रयोग देश विरोधी गतिविधियों में न हो।
हालांकि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एक्ट, 1937 के अनुसार, संपत्ति के बंटवारे में सभी उत्तराधिकारियों को हिस्सा मिलना चाहिए। इसी आधार पर हमीदुल्लाह खान की अन्य संतानों और उत्तराधिकारियों ने 1999 में ट्रायल कोर्ट में मुकदमा दाखिल किया था। अब हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया है कि वह एक साल के भीतर इस मामले की सुनवाई पूरी करें। इससे संपत्ति के अधिकार को लेकर सैफ अली खान की स्थिति फिर से बदल सकती है, अगर अदालत ने यह माना कि साजिदा सुल्तान के वारिसों का दावा वैध है।