उत्तर प्रदेश

11 लाख संविदा कर्मचारियों के हितों की हत्यारी है भाजपा सरकार- कांग्रेस

लखनऊ: यूपी की राजधानी लखनऊ में आज यानी 6 सितंबर 2025 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी असंगठित कामगार के प्रकोष्ठ के चेयरमैन, पूर्व सांसद डॉ0 उदित राज जी ने आज प्रदेश कांग्रेस कार्यालय लखनऊ में प्रेसवार्ता को सम्बोधित किया। प्रेसवार्ता में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी मीडिया विभाग के वाइस चेयरमैन मनीष श्रीवास्तव हिंदवी, राजकुमार तिवारी, डॉ0 अंशू एन्थोनी, श्री विनोद पवर, श्री आदित्य राजपूत, श्री विजय भारद्धाज मुख्य रूप से शामिल रहे।

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यूपी सरकार कर्मचारी और मजदूर विरोधी

प्रेसवार्ता को सम्बोधित करते हुए डॉ उदित राज (पूर्व सांसद), राष्ट्रीय चेयरमैन, असंगठित कामगार और कर्मचारी कांग्रेस (केकेसी) ने प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए कहा- उत्तर प्रदेश सरकार कर्मचारी और मजदूर विरोधी है। यह सरकार इतना मजदूर विरोधी है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय – धर्म सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (19 अगस्त, 2025) के बावजूद इनके हक पर डाका मार रही है ।

कांग्रेस ने बनाए थे SC/ST छात्रावास, मायावती सरकार ने 2011 में 30% सामान्य वर्ग को देकर किया अन्याय। एससी/एसटी ऐक्ट को कमजोर किया और कर्मचारियों का डिमोशन भी हुआ।

11 लाख संविदा कर्मचारियों के हितों की हत्यारी है भाजपा सरकार- डॉ0 उदित राज

मजदूर विरोधी है उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार- डॉ0 उदित राज

दलित छात्रों का हक मार रही योगी सरकार- डॉ0 उदित राज

आउटसोर्स सेवा का विरोध करती है कांग्रेस

उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल ने मंगलवार (2 सितंबर, 2025) को आउटसोर्स सेवा निगम लिमिटेड के गठन को मंजूरी दे दी, जो राज्य में आउटसोर्स कर्मचारियों को तीन साल के लिए 16,000-20,000 रुपये के मासिक मानदेय पर नियुक्त करेगा। सरकार के कुल 93 विभागों में 11 लाख आउटसोर्स्ड कर्मचारी प्रभावित होंगे।

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जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार इन्हें 2002 से सारे लाभ के साथ इन्हें नियमित करना था। कंपनी अधिनियम की धारा 8 के अंतर्गत तथाकथित उत्तर प्रदेश आउटसोर्स सेवा निगम लिमिटेड के गठन के निर्णय का विरोध कांग्रेस पार्टी करती है। यह कदम संविदा शोषण को वैध बनाने और लाखों श्रमिकों को असुरक्षित, कम वेतन वाली और असुरक्षित परिस्थितियों में धकेलने का एक व्यवस्थित प्रयास है।

11 लाख संविदा कर्मचारियों के हितों की हत्यारी है भाजपा सरकार- कांग्रेस
  1. आउटसोर्स कर्मचारियों को नियमित करने और उन्हें समान कार्य के लिए समान वेतन प्रदान करने के बजाय, योगी सरकार ने एक ऐसी व्यवस्था बनाई है जो असुरक्षित नौकरियों को वैध बनाती है, स्थायी रोजगार से वंचित करती है, और राज्य को अपने कार्यबल के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त करती है।
  2. भारत का संविधान और श्रम न्यायशास्त्र श्रमिकों की गरिमा की रक्षा करते हैं। बिना किसी कैरियर प्रोन्नति के, वेतन को ₹16,000-₹20,000 तक सीमित करने का निर्णय, सरकारी तंत्र को चलाने वाले श्रमिकों के बलिदान का अपमान है।
  3. “पारदर्शिता और कल्याण” का नारा खोखला है। प्रत्यक्ष बैंक हस्तांतरण या औपचारिक अनुबंध नौकरी की सुरक्षा, पेंशन, चिकित्सा देखभाल और सामाजिक सुरक्षा का विकल्प नहीं हो सकते। आपका निर्णय प्रभावी रूप से 11 लाख श्रमिकों को बंधुआ निर्भरता की स्थिति में रखता है, बिना ऊपर की गतिशीलता की गुंजाइश के।
  4. जबकि केंद्र और भाजपा “विकसित भारत” और “अमृत काल” का दावा करते हैं, जमीनी हकीकत आउटसोर्सिंग का यह प्रतिगामी मॉडल है। कल्याण के बजाय, आप जिम्मेदारी आउटसोर्स कर रहे हैं और श्रमिकों के जीवन की कीमत पर कॉर्पोरेट लाभ सुनिश्चित कर रहे हैं।
  5. हाल ही में, उत्तर प्रदेश सरकार कर्मचारियों के नियमितीकरण से संबंधित एक मामले में सुप्रीम कोर्ट में हार गई है। उस फैसले की भावना का पालन करने और स्थायी नियुक्तियों की ओर बढ़ने के बजाय, उ.प्र. सरकार एक आउटसोर्सिंग निगम बनाकर ध्यान भटका रही है। यह श्रमिकों को नियमित सेवा के उनके वैध अधिकार से वंचित करने का एक सीधा प्रयास है।

माननीय पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा-

  • स्थायी, आवर्ती कार्य करने वाले कर्मचारियों को नियमित रोज़गार देने से इनकार करने के लिए वित्तीय बाधाओं का हवाला नहीं दिया जा सकता।
  • एक संवैधानिक नियोक्ता के रूप में राज्य को अपने सबसे आवश्यक कर्मचारियों के बोझ तले बजट का बोझ नहीं उठाना चाहिए।
  • न्यायालय ने 24 अप्रैल 2002 से कर्मचारियों को पूर्ण बकाया वेतन के साथ तत्काल नियमित करने, रिक्तियों की कमी होने पर अतिरिक्त पदों का सृजन करने, पेंशन की पुनर्गणना करने और मृत कर्मचारियों के उत्तराधिकारियों को मुआवज़ा देने का आदेश दिया।

एक और आउटसोर्सिंग कंपनी बनाने के बजाय, उत्तर प्रदेश सरकार को चाहिए कि:

11 लाख संविदा कर्मचारियों के हितों की हत्यारी है भाजपा सरकार- कांग्रेस
  • आउटसोर्स सेवा निगम को तुरंत समाप्त करें।
  • स्वीकृत पदों पर कर्मचारियों को सीधे सरकारी पदों पर नियुक्त करने के लिए एक पारदर्शी भर्ती प्रणाली स्थापित करे।
  • मौजूदा आउटसोर्स कर्मचारियों को नियमितीकरण प्रदान करें।
  • समान कार्य के लिए समान वेतन, करियर में प्रगति और सामाजिक सुरक्षा की गारंटी दे।

डॉ उदित राज ने कहा – यदि सरकार इस मजदूर विरोधी फैसले को वापस लेने और सीधी सरकारी भर्ती की दिशा में आगे बढ़ने में विफल रहती है, तो असंगठित कामगार और कर्मचारी कांग्रेस (केकेसी) इस शोषणकारी नीति को उजागर करने और विरोध करने के लिए उत्तर प्रदेश और देश भर में श्रमिकों को लामबंद करेगी।

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“सुप्रीम कोर्ट ने नियमितीकरण का आदेश दिया और सरकार ने जवाब में नया ठेका निगम बनाया। यह ऐसा ही है जैसे लोकतंत्र को स्थायी नौकरी की जगह सरकार ने उन्हें अस्थायी प्रयोगशाला का ढांचा थमा दिया हो।”

कांग्रेस ने किया दलितों का विकास

बहुजन समाज पार्टी जब-जब सत्ता में आयी अनुसूचित जाति/ जन जातियों के अधिकारों पर कुठाराघात किया। जितना विकास दलितों का कांग्रेस ने किया अगर वही बचा रहता तो अब तक ये और आगे निकल गए होते ।

डॉ उदित राज ने कहा कि 6 सितंबर 2011 को मायावती जी की सरकार ने उप्र में अनुसूचित जाति/ जन जाति के लिए बने छात्रावासों में से 30% सामान्य वर्ग के लिए आदेश निकाल दिया था। उ.प्र. में करीब 266 हॉस्टल हैं, ज्यादातर कांग्रेस की सरकारों ने बनाए थे। अनुसूचित जाति / जनजाति के छात्र आंदोलन कर रहे हैं कि उनके लिए छात्रावास कम पड़ रहे हैं इसलिए 30% काटे गए निरस्त हों ।

आबादी बढ़ी है और उसके अनुपात में छात्र भी बढ़े हैं और ऐसे में अनुसूचित जाति/ जनजाति के लिए और हॉस्टल बनने चाहिए । पिछड़े वर्ग की आबादी सर्वाधिक है तो इनके लिए राम मनोहर लोहिया, ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले , फातिमा शेख, पेरियार आदि के नाम से हज़ारों हॉस्टल बनाना चाहिए।

11 लाख संविदा कर्मचारियों के हितों की हत्यारी है भाजपा सरकार- कांग्रेस

बसपा का ठीकरा सपा पर फूटा

डॉ उदित राज ने कहा कि मायावती ने मुख्यमंत्री के रूप में 20 मई 2007 को एक सरकारी आदेश जारी किया था जिसमें यह प्रावधान था कि SC/ST एक्ट का उपयोग तभी हो जब थाना अधिकारी (CO) जांच कर case सही पाएँ, और आरोपियों की गिरफ़्तारी केवल चार्जशीट दायर होने पर हो सकती है। इस तरह से इस एक्ट को कमजोर किया।

डॉ उदित राज ने कहा कि 4 जनवरी 2011 को लखनऊ हाई कोर्ट का फ़ैसला अदम पैरवी में हारा गया और उस समय मायावती जी मुख्यमंत्री थीं, जबकि मुक़दमे को आसानी से जीता जा सकता था नागराज की तीन शर्तों की फाइल की कार्यवाही से। परिणामस्वरूप लाखों उप्र के कर्मचारी डिमोट हुए और ठीकरा सपा सरकार पर फूटा क्योंकि सरकार बदल गई थी।

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