अमेरिकी सेना में दाढ़ी बैन! सिख, मुस्लिम और यहूदी पहचान पर मचा बवाल
US Army: वॉशिंगटन से बड़ी खबर सामने आ रही है। अमेरिकी रक्षा विभाग (पेंटागन) की नई ग्रूमिंग नीति ने सिख, मुस्लिम और यहूदी समुदायों में भारी असंतोष पैदा कर दिया है। रक्षा सचिव पीट हेगसेथ के आदेश के बाद अब धार्मिक आधार पर दाढ़ी रखने की छूट खत्म कर दी गई है। इस नए आदेश के मुताबिक अमेरिकी सेना को 2010 से पहले के सख्त मानकों पर लौटना होगा यानी चेहरे पर दाढ़ी अब “सामान्यतः अनुमत नहीं” होगी। इसका सीधा असर उन सैनिकों पर पड़ेगा जो अपने धर्म के तहत दाढ़ी रखना अनिवार्य मानते हैं।
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सिख समुदाय का तीखा विरोध
सिख कोएलिशन ने इस फैसले को “समावेशिता के खिलाफ कदम” बताया है। उनका कहना है कि सिख धर्म में केश (अकटे बाल) पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं, और इस पर प्रतिबंध धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है। वहीं एक सिख सैनिक ने एक्स (X) पर लिखा -“मेरे केश मेरी पहचान हैं। समावेशिता के लिए वर्षों की लड़ाई के बाद यह विश्वासघात जैसा लगता है।”
इतिहास गवाह है कि 1917 में भगत सिंह थिंड पहले सिख सैनिक थे जिन्हें पगड़ी और दाढ़ी के साथ अमेरिकी सेना में सेवा की अनुमति मिली थी। लेकिन अब यह परंपरा संकट में है।
मुस्लिम और यहूदी सैनिक भी चिंतित

यह नीति सिर्फ सिखों पर नहीं, बल्कि मुस्लिम और ऑर्थोडॉक्स यहूदी सैनिकों पर भी असर डाल रही है, क्योंकि मुसलमानों के लिए दाढ़ी धार्मिक अनिवार्यता है, वहीं यहूदियों के लिए यह एक पवित्र परंपरा है। उधर इस नियम को लेकर CAIR (काउंसिल ऑन अमेरिकन-इस्लामिक रिलेशंस) ने पेंटागन से जवाब मांगा है कि क्या यह निर्णय अमेरिकी संविधान के पहले संशोधन (First Amendment) के खिलाफ नहीं है, जो धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
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नस्लीय और मानवीय विवाद भी बढ़ा
#BREAKING: America ने आर्मी में दाढ़ी पर लगाया बैन
— Gaurav Dwivedi (@gauravkrdwivedi) October 4, 2025
– अमेरिकी सेना से जुड़े ट्रंप प्रशासन के इस फैसले का यहूदी, सिख और मुस्लिम, तीनों ने विरोध किया है.
– सिख प्रथम विश्व युद्ध से ही अमेरिकी सेना का हिस्सा रहे हैं. ऐसे में गुस्सा भी साफ तौर पर नजर आ रहा है. एक सिख सैनिक का कहना… pic.twitter.com/5iW8IX3ISl
नई नीति केवल धार्मिक नहीं, बल्कि नस्लीय दृष्टि से भी विवादास्पद बताई जा रही है। काले सैनिकों को त्वचा की समस्या प्सूडो फॉलिकुलाइटिस बार्बे के कारण दाढ़ी रखने की चिकित्सीय छूट दी जाती थी, लेकिन अब वह भी स्थायी नहीं रहेगी। मानवाधिकार संगठनों ने चेतावनी दी है कि यह निर्णय भेदभाव की नई संस्कृति को जन्म दे सकता है।
ट्रंप प्रशासन पर आरोप
वहीं सिख समुदाय ने इस नीति को ट्रंप प्रशासन की “कट्टर सोच” से प्रेरित बताया है। उनका कहना है कि यह फैसला “विविधता और समान अवसरों” पर हमला है और आने वाले समय में धार्मिक अल्पसंख्यकों को सेना में करियर चुनने से रोकेगा।

मानवाधिकार संगठनों की चेतावनी
मानवाधिकार समूहों का कहना है कि यह कदम समावेशिता और विविधता के अमेरिकी आदर्शों के विपरीत है। 2017 में लागू Army Directive 2017-03 ने सिख, मुस्लिम और यहूदी सैनिकों को स्थायी छूट दी थी। लेकिन अब यह नीति पलटने से भरोसे और समानता की भावना को गहरी चोट लग सकती है।
निष्कर्ष: अमेरिकी सेना में दाढ़ी बैन सिर्फ एक ग्रूमिंग नियम नहीं, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता और पहचान की लड़ाई बन चुका है। ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि क्या अमेरिका की सेना आधुनिकता के नाम पर अपनी विविधता और धार्मिक सहिष्णुता की जड़ों को काट रही है?