जानें रक्षाबंधन पर्व का खास महत्व और पावन कथा, इस शुभ मुहूर्त में धारण करें राखी
इस साल रक्षाबंधन 19 अगस्त 2024, दिन-सोमवार, श्रवण पूर्णमा रात 12 बजकर 28 मिनट तक रहेगी। वहीं श्रवण नक्षत्र दिन में 8 बजकर 50 मिनट तक रहेगा
Raksha Bandhan 2024: इस साल रक्षाबंधन बेहद ही खास है, क्योंकि इस बार सावन माह के आखिरी दिन सोमवार को रक्षाबंधन का पावन पर्व मनाया जाएंगा। इस साल रक्षाबंधन 19 अगस्त 2024, दिन-सोमवार, श्रवण पूर्णमा रात 12 बजकर 28 मिनट तक रहेगी। वहीं श्रवण नक्षत्र दिन में 8 बजकर 50 मिनट तक रहेगा, उसके बाद धनिष्ठा नक्षत्र रहेगी। ऐसे में बात करें राहु काल की तो सुबह 7 बजकर 30 मिनट से 9 बजे तक रहेगा, जिसमें शुभ काम वर्जित है।
जानें कब से लग रहा शुभ मुहूर्त
ज्योतिष शास्त्र की मानें तो रक्षाबंधन के शुभ मुहूर्त से पहले 19 अगस्त के दिन भद्रा भी 1 बजकर 25 मिनट तक रहेगा। ऐसे में काशी के पंचांग अनुसार निर्णय सिंधु से भद्रा काल में रखी का पर्व नहीं मनाया जाता वहीं भद्रा काल के उपरांत स्नान दान करके रक्षाबंधन का पूजन करें और पर्व मना कर राखी धारण करें।
जानें रक्षा सूत्र की एक पावन कथा
यह पर्व को श्रावणी कहा जाता है जिसमें ब्राह्मण अपने शिष्य के रक्षा के लिए उपदेश देते उनके रक्षा के लिए रक्षा सूत्र धारण करते उनसे संकल्प कराते हैं की वह धर्म मार्ग का अनुसरण करें। भगवान बामन का रूप धारण कर राजा बलि को रक्षा सूत्र बाधा था और उनसे संकल्प करा कर 3 पग भूमि का दान मांगा राजा बलि ने ऐसा ही किया "येन बांधो बाली राजा दान यांद्रो महा बाला" भगवान ने पूरी पृथ्वी के 3 पग में नापा था।
जानें चार वर्ण और चार पर्व
वहीं शास्त्र कहते है कि आज के दिन ब्राह्मण संकल्प करता है हम चारो वर्ण को श्रेष्ठ मार्ग देगें इसी लिए ब्राह्मण देवता कहा जाता है। हिंदू समाज में चार वर्ण चार पर्व होता है।
- पहला पर्व रक्षाबंधन
- दूसरा पर्व विजयादशमी यह क्षेत्री का पर्व होता हैं।
- तीसरा पर्व दीपावली यह बैशय का पर्व होता है।
- चौथा पर्व होली यह सेवा काम करने वाले का होता है। सब लोग यहां मिल जाते समाज का उत्थान करते हैं।
रक्षाबंधन की पावन गाथा को जन तक पहुंचाएं
कहा जाता है शकुंतला के पुत्र भरत को ऋषि ने रक्षा सूत्र बाधा था। जंगल में उसकी रक्षा के लिए अगर उसके माता पिता के अलावा कोई भी इस बालक को छूएगा तो यह सूत्र सर्प बनकर काट लेगा। जिस समय श्राप के कारण दुष्यंत और शकुंतला का वियोग हो गया था एक दूसरे को भूल गए थे उस समय की कहानी कहती है महा कवि कालिदास अभिज्ञान शकुंतला में कहते है यही रक्षा सूत्र के द्वारा दुष्यंत शकुंतला का मिलन हुआ और शकुंतला भरत के साथ अपने पति दुष्यंत के राज में गई। उसी बालक भरत ने आगे चलकर आर्या वर्त को भारत वर्ष के नाम से मशहूर किया जिसे हम गर्व से भारत कहते है।