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जानें बसंत पंचमी के दिन का महत्व और मां की वंदना से पाएं मां सरस्वती की कृपा..


देश भर में आज बसंत पंचमी मनाया जा रहा है, तो आईये जानते है इस पर्व की महत्वपूर्ण जानकारी...


बसंत पंचमी: देश भर में आज बसंत पंचमी मनाया जा रहा है, तो आईये जानते है इस पर्व की महत्वपूर्ण जानकारी...आज 14 फरवरी 2024 दिन बुधवार को बसंत पंचमी को हम सब बसंत पर्व मनाते है तो जाने बसंत क्या है, और इसे क्यों मनाते है, साथ ही यह भी जानते है कि इसे क्यों मानना चाहिए। बसंत परमात्मा का सर्वोत्तम पर्व है जानने समझने का पर्व है, और खुद की समीक्षा करने का पर्व है। 
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जानें पं. जी से बसंत का साइंटिफिक रीजन

वही वसंत क्या है इसका साइंस क्या है प्रकृति का स्वरूप समझे पतझण के बाद नया स्वरूप होना, खेतो में नया कोपिल उगना, खेतो का हरा भरा होना, और आनाज का बाहर आना यह प्रकृति का स्वरूप है। नया कोपिल का फूल बनकर खिलाना सुंदरता बिखेरता है, उसी प्रकार मनुष्य को भी अपने जीवन में समिक्षा करना चाहिए और आत्म चिंतन करना चाहिए और खिलाना चाहिए।
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जिससे छोटे से लेकर बडे तक का स्किल डव्लप हो सकें। मनुष्य को फूलो की भाती नया जीवन पाकर खुश होना चाहिए और बसंत बनकर जीवन धन्य, और खुशियाली लानी चाहिए। उसमे गुरु का सहारा प्रकिर्त के रूप में लेना चाहिए जीवन उत्सव बन जाएगा। आज से नया जीवन जीना शुरू करें। यह विचार पं. रामनजर मिश्र ज्योतिषाचार्य का है।

जानें बसंत पंचमी का महत्व

बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा-आराधना करना चाहिए क्योंकि यह दिन मां सरस्वती का विशेष दिन होता है मां सरस्वती विद्या की देवी माना गया है उनकी पूजा करने से तेजस्वी और प्रबल बुद्धि होती है, इस दिन पीले कपड़े पहनकर बसंत और मां सरस्वती का पूजन करना चाहिए। मान्यता है कि इस तिथि पर देवी सरस्वती का जन्म हुआ था।
पीले सरसों के बीच युवतियों ने किया बसंत का स्वागत, देखें इन तस्वीरों में  |Basant Panchami festival celebration pictures in satna | Patrika News
मुहूर्त शास्त्र में वसंत पंचमी की तिथि को अबूझ मुहूर्त माना जाता है, जिसमें किसी भी शुभ कार्य को करने में मुहूर्त का विचार नहीं करते। वसंत पंचमी पर कई तरह के शुभ कार्यों के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। बसंत पंचमी अबूझ मुहूर्त में विद्यारंभ, गृह प्रवेश, विवाह और नई वस्तु की खरीदारी के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। 
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मां सरस्वती की वंदना 

या कुन्देन्दु तुषार हारधवला, या शुभ्र वस्त्रावृता,
या वीणावर दण्ड मण्डित करा, या श्वेत पद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकर प्रभृतिभिर् देवै सदा वन्दिता,
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहा॥

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमां आद्यां जगद्व्यापिनीं,
वीणा-पुस्तक-धारिणीम् अभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।
हस्ते स्फटिक मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌,
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌ ||

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