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जानें भगवान जगन्नाथ की कैसे हुई उत्पत्ति, क्या रही जगन्नाथ यात्रा की कहानी


ओडिशा के पुरी में हर साल आषाढ़ माह में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है। जगत के स्वामी यानी भगवान जगन्नाथ को भगवान श्रीकृष्ण का रूप बताया जाता हैं। जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि से शुरू होती हैं।


Jagannath Rath Yatra: हिन्दू संस्कृति हमारे देश में होने वाली सांस्कृतिक भावनाओं से जुड़ने के लिए जाना जाता हैं। हमारा देश धर्म, पूजा-पाठ, प्रार्थना और अपने हिन्दूत्व के लिए जाना जाता हैं। ये परंपरा हमारे भारत में आज से नहीं बल्कि युगों से युगों से चलती चली आ रही हैं। फिर चाहे वो त्रेतायुग में हुई रामायण की रचना हो या फिर द्वापर युग में हुई महाभारत की रचना ये सभी कहीं ना कहीं से हमें धर्म से जोड़ती हैं और हमें जीवन जीने की कला को बताती हैं, इन सभी रचनाओं से हमें अपने जीवन में बहुत कुछ सीखने को मिलता हैं ऐसे ही आज भी हमारे भारत में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं ऐसे ही एक कार्यक्रम के बारें में आज हम आपको बताएंगे जिसका नाम जगन्नाथ भगवान की यात्रा जिसे लोग युगो-युगो से निकालते चले आ रहे हैं। 

Jagannath Rath Yatra: wakt ki awaj

आइये जानें जगन्नाथ भगवान की महिमा 

ओडिशा के पुरी में हर साल आषाढ़ माह में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है। जगत के स्वामी यानी भगवान जगन्नाथ को भगवान श्रीकृष्ण का रूप बताया जाता हैं। जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि से शुरू होती हैं। आपको बता दे कि भगवान जगन्नाथ यात्रा का ये उत्सव पूरे 10 दिनों तक भव्य रूप से आयोजित किया जाता है। इस रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिमाओं को तीन अलग-अलग दिव्य रथों पर विराजमान करके नगर में भ्रमण कराया जाता है।

इस साल कब निकलेगी भगवान जगन्नाथ की रथ (Jagannath Rath Yatra)

हर साल निकलने वाली भगवान जगन्नाथ की यात्रा इस साल 20 जून 2023 को निकलेगी। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि 19 जून 2023 को सुबह 11.25 से अगले दिन 20 जून 2023 दोपहर 01.07 बजे तक रहेगी। 

Jagannath Rath Yatra 2023 wakt ki awaj

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का क्या है महत्व (Jagannath Rath Yatra Significance)

हिंदू धर्म में विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा का बहुत ही अधिक महत्व है। यात्रा के पीछे यह मान्यता है कि भगवान अपने गर्भ गृह से निकलकर प्रजा का हाल जानते हैं। वहीं  इस यात्रा की महानता को देखने के लिए देश-विदेश से लाखों लोग इस रथ यात्रा में शामिल होते हैं। यहां ये भी मान्यता है कि जो भक्त इस रथ यात्रा में हिस्सा लेकर भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचता है उनके तमाम दुख, दर्द और कष्ट खत्म हो जाते हैं और उन्हें सौ यज्ञ करने के समान पुण्य प्राप्त होता है।

रथ यात्रा निकालने से पहले होते यह कार्यक्रम

Jagannath Rath Yatra 2023  wakt ki awaj

उड़ीसा में निकलने वाली भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकालने के 15 दिन पहले ही जगन्नाथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।  इस अवधि में भक्त दर्शन नहीं कर सकते हैं। ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलराम की मूर्तियों को गृर्भग्रह से बाहर लाया जाता है और पूर्णिमा स्नान के बाद 15 दिन के लिए वे एकांतवास में चले जाते हैं। माना जाता है पूर्णिमा स्नान में ज्यादा पानी से नहाने के कारण भगवान बीमार हो जाते हैं। इसलिए एकांत में उनका उपचार किया जाता है।

आइये जानते हैं भगवान जगन्नाथ की प्रचलित कथाएं

पहली कथा 

जब राजा इंद्रद्युम ने जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां बनवाई तो रानी गुंडिचा ने मूर्तियां बनाते हुए मूर्तिकार विश्वकर्मा और मूर्तियों को देख लिये जिसके चलते मूर्तियां अधूरी ही रह गई, तब आकाशवाणी हुई कि भगवान इसी रूप में स्थापित होना चाहते हैं। इसके बाद राजा ने इन्हीं अधूरी मूर्तियों को मंदिर में स्थापित कर दिया। उस वक्त भी आकाशवाणी हुई कि भगवान जगन्नाथ साल में एक बार अपनी जन्मभूमि मथुरा जरूर आएंगे। स्कंदपुराण के उत्कल खंड के अनुसार राजा इंद्रद्युम ने आषाढ़ शुक्ल द्वितीया के दिन प्रभु के उनकी जन्मभूमि जाने की व्यवस्था की। तभी से यह परंपरा रथयात्रा के रूप में चली आ रही है।

LORD JAGANNATH ILL FOR 15 DAYS EVERY YEAR wakt ki awaj

दूसरी कथा 

वहीं में कहीं गई दूसरी कथा की मानें तो सुभद्रा के द्वारिका दर्शन की इच्छा पूरी करने के लिए श्रीकृष्ण और बलराम ने अलग-अलग रथों में बैठकर यात्रा की थी। सुभद्रा की नगर यात्रा की स्मृति में ही यह रथयात्रा पुरी में हर साल होती है। इस रथयात्रा के बारे में स्‍कंद पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण और ब्रह्म पुराण में भी बताया गया है।

तीसरी कथा 

पुराणों की मानें तो एक बार राधा रानी कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण से मिलने पहुंची और वहां उन्होंने श्रीकृष्ण से वृंदावन आने का निवेदन किया। राधारानी के निेवेदन को स्वीकार करके एक दिन श्रीकृष्ण अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ वृंदावन के द्वार पहुंचे तो राधारानी, गोपियों और वृंदावनवासियों को इतनी खुशी हुई कि उन्होंने तीनों को रथ पर विराजमान करके उसके घोड़ों को हटाकर उस रथ को खुद की अपने हाथों से खींचकर नगर का भ्रमण कराया। इसके अलावा वृंदावनवासियों ने जग के नाथ अर्थात उन्हें जगन्नाथ कहकर उनकी जय-जयकार की। तभी यह यह परंपरा वृंदावन के अलावा जगन्नाथ में भी प्रारंभ हो गई।

चौथी कथा 

चारण परम्परा के अनुसार भगवान द्वारिकाधीशजी के साथ, बलराम और सुभद्राजी का समुद्र के किनारे अग्निदाह किया गया था। कहते हैं कि उस वक्त समुद्र के किनारे तूफान आ गया और द्वारिकाधीशजी के अधजले शव पुरी के समुद्र के तट पर बहते हुए पहुंच गए। पुरी के राजा ने तीनों शवों को अलग-अलग रथ में विराजित करवाया और पुरे नगर में लोगों ने खुद रथों को खींचकर घुमाया और अंत में जो दारु का लकड़ी शवों के साथ तैर कर आई थी उसीसे पेटी बनवा कर उन शवों को उनमें रखकर उसे भूमि में समर्पित कर दिया। इस घटना की स्मृति में ही आज भी इस परंपरा को निभाया जाता है। चारणों की पुस्तकों में इसका उल्लेख मिलता। 

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