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लोकसभा चुनाव 2024 : जानें लोकसभा चुनाव का इतिहास, राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश


लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियां तोजी से शुरु हो चुकी हैं, लोकसभा संवैधानिक रूप से लोगों का सदन है साथ ही भारत की द्विसदनीय संसद का निचला सदन है, जिसमें उच्च सदन राज्य सभा है। वहीं लोकसभा चुनाव के मुखिया पद पर सभी की नजरें बनी हुई हैं, मगर देखना यह है कि कौन कितना दांव मारेगा यह तो अभी तय नहीं किया जा सकता हैं। आपको बताते चले लोकसभा के सदस्य अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक वयस्क सार्वभौमिक मताधिकार और एक सरल बहुमत प्रणाली द्वारा चुने जाते हैं


लोकसभा चुनाव 2024: लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियां तोजी से शुरु हो चुकी हैं, लोकसभा संवैधानिक रूप से लोगों का सदन है साथ ही भारत की द्विसदनीय संसद का निचला सदन है, जिसमें उच्च सदन राज्य सभा है। वहीं लोकसभा चुनाव के मुखिया पद पर सभी की नजरें बनी हुई हैं, मगर देखना यह है कि कौन कितना दांव मारेगा यह तो अभी तय नहीं किया जा सकता हैं।

आपको बताते चले लोकसभा के सदस्य अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक वयस्क सार्वभौमिक मताधिकार और एक सरल बहुमत प्रणाली द्वारा चुने जाते हैं, और वे पांच साल तक या जब तक राष्ट्रपति केंद्रीय मंत्री परिषद् की सलाह पर सदन को भंग नहीं कर देते, तब तक वे अपनी सीटों पर बने रहते हैं। वहीं अगर देखा जाए तो लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की राजनीति की सबसे बड़ी अहमियत होती है, क्योंकि यूपी में बाकी राज्यों के मुकाबले सबसे अधिक यानि की 80 सीटें हैं।

लोकसभा चुनाव - wakt ki awaz

लोकसभा का इतिहास

भारत के संविधान द्वारा आवंटित सदन की अधिकतम सदस्यता 552 है, वहीं शुरुआत 1950 में यह सदस्यता 500 थी। वहीं वर्तमान में देखें तो सदन में 543 सीटें हैं जो अधिकतम 543 निर्वाचित सदस्यों के चुनाव से बनती हैं। 1952 और 2020 के बीच, भारत सरकार की सलाह पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा एंग्लो-इंडियन समुदाय के 2 अतिरिक्त सदस्यों को भी नामित किया गया था, जिसे 104वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 द्वारा जनवरी 2020 में समाप्त कर दिया गया था।

2019 की जीती सीट

लोकसभा चुनाव को लेकर देखा जाए तो यूपी की 80 सीटों पर हुए चुनाव में लोकसभा चुनाव 2019 में एनडीए ने जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में एनडीए में बीजेपी और अपना दल (एस) एक साथ मिलकर लड़े थे और एनडीए का 51.19 प्रतिशत वोट शेयर रहा था। जिसमें बीजेपी के खाते में 49.98 प्रतिशत और अपना दल (एस) को 1.21 प्रतिशत वोट शेयर मिला था। वहीं महगठबंधन (बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल) को 39.23 प्रतिशत वोट शेयर मिला था। जिसमें बसपा को 19.43 प्रतिशत, सपा को 18.11 प्रतिशत और रालोद को 1.69 प्रतिशत वोट मिला था। इसके अलावा कांग्रेस को इस चुनाव में 6.36 वोट शेयर मिला था।

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लोक सभा की सीटें निम्नानुसार 29 राज्यों और 7 केन्द्र शासित प्रदेशों के बीच विभाजित है: -

उपविभाजन  -  प्रकार  -  निर्वाचन क्षेत्र की संख्या

हिमांचल प्रदेश              -  राज्य     - 4
हरियाणा                      -  राज्य     - 10
सिक्किम                      - राज्य      - 1
लक्षद्वीप                       - केन्द्र शासित प्रदेश - 1
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली     - केन्द्र शासित प्रदेश - 7
राजस्थान                      - राज्य    -  25
मेघालय                        - राज्य     - 0
महाराष्ट्र                        - राज्य     - 48
मध्य प्रदेश                    - राज्य     - 29
मणिपुर                        - राज्य     - 2
बिहार                          - राज्य     - 40
पुदुच्चेरी                       - केन्द्र शासित प्रदेश - 1
पच्श्रिम बंगाल                - राज्य   - 42
पंजाब                          - राज्य    - 13
नागालैंड                       - राज्य    - 1
दादरा और नगर हवेली    - केन्द्र शासित प्रदेश - 1
दमन और दीव              - केन्द्र शासित प्रदेश - 1
त्रिपुरा                          - राज्य     - 2
तेलंगाना                       - राज्य    - 17
तमिल नाडु                   - राज्य    - 39
झारखंड                       - राज्य    - 14
जम्मू और कश्मीर          - केन्द्र शासित प्रदेश - 6
छत्तीसगढ़                    - राज्य     - 11
चंडीगढ़                       - केन्द्र शासित प्रदेश -1
गोवा                           - राज्य     - 1
गुजरात                       - राज्य     - 26
केरल                         - राज्य     - 20
कर्नाटक                     - राज्य     - 28
उत्तराखंड                   - राज्य     - 5
उत्तर प्रदेश                 - राज्य     - 80
उड़ीसा                      - राज्य      - 21
आन्ध्र प्रदेश                - राज्य      - 25
असम                       - राज्य       - 14
अरुणाचल प्रदेश         - राज्य      - 2
अण्मान और निकोबार द्वीपसमूह - केन्द्र शासित प्रदेश - 1

लोक सभा का कार्यकाल

बताते चले लोकसभा का कार्यकाल यदि समय से पहले भंग ना किया जाये तो, इसका कार्यकाल अपनी पहली बैठक से लेकर अगले पाँच वर्ष तक होता है उसके बाद यह स्वत: भंग हो जाती है। लोक सभा के कार्यकाल के दौरान यदि आपातकाल की घोषणा की जाती है तो संसद को इसका कार्यकाल कानून के द्वारा एक समय में अधिकतम एक वर्ष तक बढ़ाने का अधिकार है, जबकि आपातकाल की घोषणा समाप्त होने की स्थिति में इसे किसी भी परिस्थिति में छ: महीने से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता।

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लोकतंत्र में राजनीतिक पार्टियों की अहम भूमिका

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में राजनीतिक पार्टियों की अहम भूमिका है। इन राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधि चुनाव के माध्यम से सांसद के तौर पर चुनकर, देश की संसद में उन इलाके के लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। हर एक आम चुनाव के बाद 543 सांसद चुनकर लोकसभा तक पहुंचते हैं।

आपको बता दे कि लोकसभा, संवैधानिक रूप से लोगों का सदन और भारत की द्विसदनीय संसद का निचला सदन है, जिसमें उच्च सदन राज्य सभा है। लोकसभा के सदस्य अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक सर्वजनीन मताधिकार और एक सरल बहुमत प्रणाली द्वारा चुने जाते हैं, और वे पांच साल तक या जब तक राष्ट्रपति केंद्रीय मंत्री परिषद् की सलाह पर सदन को भंग नहीं कर देते, तब तक वह अपनी सीटों पर बने रहते हैं। बताते चले कि सदन संसद भवन, नई दिल्ली के लोकसभा कक्ष में मिलता है।

भारत के संविधान द्वारा आवंटित सदन की अधिकतम सदस्यता 552 है। मगर 1950 में, यह 500 थी और वर्तमान में सदन में 543 सीटें हैं। जो अधिकतम 543 निर्वाचित सदस्यों के चुनाव से बनती हैं।

जानें लोक सभा का कार्यकाल

यदि समय से पहले भंग ना किया जाये तो, लोक सभा का कार्यकाल अपनी पहली बैठक से लेकर अगले पाँच वर्ष तक होता है उसके बाद यह स्वत: भंग हो जाती है। लोक सभा के कार्यकाल के दौरान यदि आपातकाल की घोषणा की जाती है तो संसद को इसका कार्यकाल कानून के द्वारा एक समय में अधिकतम एक वर्ष तक बढ़ाने का अधिकार है, जबकि आपातकाल की घोषणा समाप्त होने की स्थिति में इसे किसी भी परिस्थिति में 6 महीने से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता।

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जानें लोकसभा की विशेष शक्तियाँ

मंत्री परिषद केवल लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है।
अविश्वास प्रस्ताव सरकार के विरूद्ध केवल यहीं लाया जा सकता है।
धन बिल पारित करने में यह निर्णायक सदन है।
राष्ट्रीय आपातकाल को जारी रखने वाला प्रस्ताव केवल लोकसभा मे लाया और पास किया जायेगा।

लोकसभा के पदाधिकारी

लोकसभा अध्यक्ष (स्पीकर)
मुख्य लेख: लोक सभा अध्यक्ष

लोकसभा अपने निर्वाचित सदस्यों में से एक सदस्य को अपने अध्यक्ष (स्पीकर) के रूप में चुनती है। कार्य संचालन में अध्यक्ष की सहायता उपाध्यक्ष द्वारा की जाती है, जिसका चुनाव भी लोक सभा के निर्वाचित सदस्य करते हैं। लोक सभा में कार्य संचालन का उत्तरदायित्व अध्यक्ष का होता है।वर्तमान मे लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला है।

लोकसभा अध्यक्ष के काम

1. लोकसभा की अध्यक्षता करना और उस में अनुसाशन, गरिमा तथा प्रतिष्टा बनाये रखना। इस कार्य हेतु वह किसी न्यायालय के सामने उत्तरदायी नहीं होता है।

2. वह लोकसभा से संलग्न सचिवालय का प्रशासनिक अध्यक्ष होता है किंतु इस भूमिका के रूप में वह न्यायालय के समक्ष उत्तरदायी होगा।

स्पीकर की विशेष शक्तियाँ

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1. दोनो सदनों का सम्मिलित सत्र बुलाने पर स्पीकर ही उसका अध्यक्ष होगा। उसके अनुउपस्थित होने पर उपस्पीकर तथा उसके भी न होने पर राज्यसभा का उपसभापति अथवा सत्र द्वारा नांमाकित कोई भी सदस्य सत्र का अध्यक्ष होता है

2. धन बिल का निर्धारण स्पीकर करता है। यदि धन बिल पे स्पीकर साक्ष्यांकित नहीं करता तो उस बिल को धन बिल नहीं माना जायेगा। स्पीकर का निर्णय अंतिम तथा बाध्यकारी होता है।

3. सभी संसदीय समितियाँ उसकी अधीनता में काम करती हैं। उसके किसी समिति का सदस्य चुने जाने पर वह उसका पदेन अध्यक्ष होगा

4. लोकसभा के विघटन होने पर भी स्पीकर पद पर कार्य करता रहता है। नवीन लोकसभा के चुने जाने पर ही वह अपना पद छोड़ता है।

लोकसभा के सत्र

1. बजट सत्र वर्ष का पहला सत्र होता है सामान्यत फरवरी मई के मध्य चलता है यह सबसे लंबा तथा महत्वपूर्ण सत्र माना जाता है इसी सत्र मे बजट प्रस्तावित तथा पारित होता है सत्र के प्रांरभ मे राष्ट्रपति का अभिभाषण होता है

2. मानसून सत्र जुलाई अगस्त के मध्य होता है

3. शरद सत्र नवम्बर-दिसम्बर के मध्य होता है सबसे कम समयावधि का सत्र होता है

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विशेष सत्र – इस के दो भेद है

1. संसद के विशेष सत्र
2. लोकसभा के विशेष सत्र

संसद के विशेष सत्र – प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति इनका आयोजन करता है ये किसी नियमित सत्र के मध्य अथवा उससे पृथक आयोजित किये जाते है एक विशेष सत्र मे कोई विशेष कार्य चर्चित तथा पारित किया जाता है यदि सदन चाहे भी तो अन्य कार्य नही कर सकता है।

लोकसभा का विशेष सत्र – अनु 352 मे इसका वर्णन है किंतु इसे 44 वें संशोधन 1978 से स्थापित किया गया है यदि लोकसभा के कम से कम 1/10 सद्स्य एक प्रस्ताव लाते है जिसमे राष्ट्रीय आपातकाल को जारी न रखने की बात कही गयी है तो नोटिस देने के 14 दिन के भीतर सत्र बुलाया जायेगा।

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