लोकसभा चुनाव : उन्नाव सीट का इतिहास और राजनीतिक सफर
यूपी में 80 सीट है और हर सीट अलग अलग महत्व है, यूपी की 80 सीटे भारत की लोकसभा सीट में सबसे ज्यादा सीट मानी जाती हैं, वहीं आज हम आपको बताएंगे यूपी के उन्नाव सीट का इतिहास... यूपी का उन्नाव जिला पर जब फरवरी 1856 में अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया था उसके बाद बनाया गया था। इसके पहले नवाबों के अधीन यह जिला अलग-अलग जिला और चकलाओं के बीच बंटा हुआ था। 1857-1858 के आजादी के संघर्ष के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश क्राउन तक सत्ता का हस्तांतरण किया गया। जैसे ही आदेश बहाल किया गया था, नागरिक प्रशासन को जिले में फिर से स्थापित किया गया था जिसका नाम उन्नाव था।
लोकसभा चुनाव 2024 : लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियां तोजी से शुरु हो चुकी हैं, लोकसभा संवैधानिक रूप से लोगों का सदन है साथ ही भारत की द्विसदनीय संसद का निचला सदन है, जिसमें उच्च सदन राज्य सभा है। वहीं लोकसभा चुनाव के मुखिया पद पर सभी की नजरें बनी हुई हैं, मगर देखना यह है कि कौन कितना दांव मारेगा यह तो अभी तय नहीं किया जा सकता हैं।
आपको बताते चले लोकसभा के सदस्य अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक वयस्क सार्वभौमिक मताधिकार और एक सरल बहुमत प्रणाली द्वारा चुने जाते हैं, और वे पांच साल तक या जब तक राष्ट्रपति केंद्रीय मंत्री परिषद् की सलाह पर सदन को भंग नहीं कर देते, तब तक वे अपनी सीटों पर बने रहते हैं। वहीं अगर देखा जाए तो लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की राजनीति की सबसे बड़ी अहमियत होती है, क्योंकि यूपी में बाकी राज्यों के मुकाबले सबसे अधिक यानि की 80 सीटें हैं।
जानें उन्नाव का इतिहास
यूपी में 80 सीट है और हर सीट अलग अलग महत्व है, यूपी की 80 सीटे भारत की लोकसभा सीट में सबसे ज्यादा सीट मानी जाती हैं, वहीं आज हम आपको बताएंगे यूपी के उन्नाव सीट का इतिहास... यूपी का उन्नाव जिला पर जब फरवरी 1856 में अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया था उसके बाद बनाया गया था। इसके पहले नवाबों के अधीन यह जिला अलग-अलग जिला और चकलाओं के बीच बंटा हुआ था। 1857-1858 के आजादी के संघर्ष के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश क्राउन तक सत्ता का हस्तांतरण किया गया। जैसे ही आदेश बहाल किया गया था, नागरिक प्रशासन को जिले में फिर से स्थापित किया गया था जिसका नाम उन्नाव था।
जिले में 13 परगनाओं बांगर्मू, फतेहपुर चौरसी, सिपीपुर, परिर, सिकंदरपुर, उन्नाव, हरहा, असिवान-रसूलबाद, झलोटार-अजगैन, गोरिंडा प्रसादंद, पूरवा, आशा और मौणवान शामिल थे।
जानें उन्नाव का राजनीति सफर
1952 - विश्वंभर दयाल त्रिपाठी - (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1957 - विश्वंभर दयाल त्रिपाठी - (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1960 - लीला धर अस्थाना - (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1962 - कृष्ण देव त्रिपाठी - (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1967 - कृष्ण देव त्रिपाठी - (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1971 - कृष्ण देव त्रिपाठी - (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1977 - राघवेंद्र सिंह - (जनता पार्टी)
1980 - जियाउर्रहमान अंसारी - (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1984 - जियाउर्रहमान अंसारी - (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1989 - अनवर अहमद - (जनता दल)
1991 - देवी बक्स सिंह - (भारतीय जनता पार्टी)
1996 - देवी बक्स सिंह - (भारतीय जनता पार्टी)
1998 - देवी बक्स सिंह - (भारतीय जनता पार्टी)
1999 - दीपक कुमार - (समाजवादी पार्टी)
2004 - ब्रजेश पाठक - (बहुजन समाज पार्टी)
2009 - अन्नू टंडन - (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
2014 - साक्षी महाराज - (भारतीय जनता पार्टी)
2019 - साक्षी महाराज - (भारतीय जनता पार्टी)
जिले का उद्योग
उन्नाव एक बड़ा औद्योगिक शहर है जिसके चारों ओर तीन औद्योगिक उपनगर हैं। चमड़ा उद्योग, हैंडलूम, वस्त्र उद्योग और शिक्षा उद्योग उन्नाव जिले के मुख्य उद्योग हैं। यह शहर अपने चमड़े, ज़री-जरदोज़ी का काम, मच्छरदानी और रासायनिक उद्योगों के लिए प्रसिद्ध है। ज़री-जरदोज़ी उन्नाव में प्रमुख मौजूदा क्लस्टर में से एक है।
उन्नाव का सांसद और जातीय समीकरण
उन्नाव जिले के अगर जातीय समीकरण की बात कि जाएं तो जिला के वर्तमान सांसद साक्षी महाराज हैं और मौजूदा समय में देखा जाए तो जिले में लोधी मतदाताओं की बड़ी संख्या हैं। इसके अलावा दलित मतदाताओं की बड़ी संख्या भाजपा के साथ में हैं। वहीं अगर उन्नाव सीट पर जीते हुए पार्टी की बात करें तो कांग्रेस उन्नाव में 9 बार जीत हासिल कर चुकी है, बीजेपी उन्नाव सीट से 6 बार जीत हासिल की हैं बसपा, सपा और जनता दल को भी एक-एक बार उन्नाव की जनता के द्वारा विजयी समर्थन दिया जा चुका हैं।
उन्नाव लोकसभा सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां दलित, सवर्ण और मुस्लिम मतदाता मौजूद हैं। लगभग 21 लाख मतदाताओं वाली इस लोकसभा सीट में 13.63 लाख वोट दलित, सवर्ण और अल्पसंख्यक जाति से हैं, और यही मतदाता इस सीट पर विजेता का निर्णय करते हैं। वहीं अब देखना यह है कि इस सीट पर किसको टिकट मिलता हैं वो भविष्य के गर्भ में निहित हैं पर समीकरण के मुताबिक यहां सबकी कोशिश निर्णायक भूमिका वाले वर्ग में से ही चुनने की होगी क्योंकि बिना जातीय समीकरण को संभाले उन्नाव जैसी महत्वपूर्ण लोकसभा सीट को जीतना संम्भव नहीं हैं।