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लोकसभा चुनाव : राधा-कृष्ण की प्रेम नगरी मथुरा का इतिहास


मथुरा, भगवान कृष्ण की जन्मस्थली और भारत की प्राचीन नगरी है। पोराणिक कथा की माने तो शूरसेन की यहाँ राजधानी थी। वहीं मथुरा को भी कई नामों से जाना है जैसे- शूरसेन नगरी, मधुपुरी, मधुनगरी, मधुरा आदि। यह नगरी यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है। मथुरा ऐतिहासिक रूप से कुषाण राजवंश द्वारा राजधानी के रूप में विकसित नगर है। वहीं लोगों का यह भी मानना है कि लगभग 7500 वर्ष से यह नगर अस्तित्व में है जिसके साथ ही मथुरा धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।


लोकसभा चुनाव 2024 : लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियां तोजी से शुरु हो चुकी हैं, लोकसभा संवैधानिक रूप से लोगों का सदन है साथ ही भारत की द्विसदनीय संसद का निचला सदन है, जिसमें उच्च सदन राज्य सभा है। वहीं लोकसभा चुनाव के मुखिया पद पर सभी की नजरें बनी हुई हैं, मगर देखना यह है कि कौन कितना दांव मारेगा यह तो अभी तय नहीं किया जा सकता हैं।

लोकसभा चुनाव: WAKT KI AWAZ

आपको बताते चले लोकसभा के सदस्य अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक वयस्क सार्वभौमिक मताधिकार और एक सरल बहुमत प्रणाली द्वारा चुने जाते हैं, और वे पांच साल तक या जब तक राष्ट्रपति केंद्रीय मंत्री परिषद् की सलाह पर सदन को भंग नहीं कर देते, तब तक वे अपनी सीटों पर बने रहते हैं। वहीं अगर देखा जाए तो लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की राजनीति की सबसे बड़ी अहमियत होती है, क्योंकि यूपी में बाकी राज्यों के मुकाबले सबसे अधिक यानि की 80 सीटें हैं।

राधा-कृष्ण की नगरी का इतिहास

राधा-कृष्ण का प्रेम पूरी दुनिया में एक मिसाल है वह प्रेम की नीव मथुरा में रखी गई इसकी पहचान प्रेमनगरी से जानी जाती हैं और यहां प्रेम का आधार राधा-कृष्ण हैं। मथुरा जिसका नाम सुनते ही मन में प्रेम घुल जाता है। मथुरा भारतीय संस्कृति और सभ्यता का केंद्र रहा है। भारतीय धर्म, दर्शन कला और साहित्य के निर्माण तथा विकास में मथुरा का महत्त्वपूर्ण योगदान सदा से रहा है। आज भी महाकवि सूरदास, संगीत के आचार्य स्वामी हरिदास, स्वामी दयानंद के गुरु स्वामी विरजानंद, चैतन्य महाप्रभु आदि से इस नगरी का नाम जुड़ा हुआ है।

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मथुरा, भगवान कृष्ण की जन्मस्थली और भारत की प्राचीन नगरी है। पोराणिक कथा की माने तो शूरसेन की यहाँ राजधानी थी। वहीं मथुरा को भी कई नामों से जाना है जैसे- शूरसेन नगरी, मधुपुरी, मधुनगरी, मधुरा आदि। यह नगरी यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है। मथुरा ऐतिहासिक रूप से कुषाण राजवंश द्वारा राजधानी के रूप में विकसित नगर है। वहीं लोगों का यह भी मानना है कि लगभग 7500 वर्ष से यह नगर अस्तित्व में है जिसके साथ ही मथुरा धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।

मथुरा नगरी पर शिव का आशीष

मथुरा को लेकर यह भी कहा जाता है कि मथुरा के चारों ओर चार शिव मंदिर हैं, चारों दिशाओं में स्थित होने के कारण भगवान शिव को मथुरा का कोतवाल कहते हैं और इसी के चलते मथुरा को आदि वाराह भूतेश्वर क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है।

पूर्व दिशा में पिपलेश्वर महादेव का मंदिर हैं। 
दक्षिण दिशा में रंगेश्वर महादेव का मंदिर हैं। 
उत्तर दिशा में गोकर्णेश्वर महादेव का मंदिर हैं।
पश्चिम दिशा में भूतेश्वर महादेव का मन्दिर है। 

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वहीं इस नगरी को लेकर यह भी कहा जाता है कि श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने श्री केशवदेवजी की मूर्ति स्थापित की थी पर औरंगजेब के काल में वह रजधाम में पधार दी गई व औरंगजेब ने मंदिर को तोड़ डाला और उसके स्थान पर मस्जिद खड़ी कर दी। बाद में उस मस्जिद के पीछे नया केशवदेवजी का मंदिर बन गया है। प्राचीन केशव मंदिर के स्थान को केशवकटरा कहते हैं। खुदाई होने से यहाँ बहुत सी ऐतिहासिक वस्तुएँ प्राप्त हुई थीं। ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान ने कंस वध के पश्चात्‌ यहीं विश्राम लिया था।

मथुरा की परिक्रमा और सप्तपुरियों की गाथा

भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा में ऐसी मान्यता है कि प्रत्येक एकादशी और अक्षय नवमी को मथुरा की परिक्रमा होती है। देवशयनी और देवोत्थापनी एकादशी को मथुरा-गरुड गोविन्द-वृन्दावन की एक साथ परिक्रमा की जाती है। यह परिक्र्मा 21 कोसी या तीन वन की भी कही जाती है। वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को रात्रि में परिक्रमा की जाती है, जिसे वनविहार की परिक्रमा कहते हैं।

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श्री दाऊजी ने द्वारका से आकर, वसन्त ऋतु के दो मास व्रज में बिताकर जो वनविहार किया था तथा उस समय यमुनाजी को खींचा था, यह परिक्रमा उसी की स्मृति है। भारतवर्ष के सांस्कृतिक और आधात्मिक गौरव की आधारशिलाऐं इसकी सात महापुरियां हैं। ‘गरुडपुराण’ में इनके नाम इस क्रम से वर्णित हैं। पदम पुराण में मथुरा का महत्व सर्वोपरि माना गया है कि इन पुरियों तो मोक्ष दायिनी भी कहती है। यह पुरी देवताओं के लिये भी दुर्लभ है।

संगीत नगरी ब्रज

मथुरा में संगीत का प्रचलन बहुत पुराना है, कृष्ण की बांसुरी ब्रज का प्रमुख वाद्य यंत्र है, जिस लिए कान्हा को ‘मुरलीधर’ और ‘वंशीधर’ के नाम से भी पुकारा जाता है। वर्तमान में भी ब्रज के लोक संगीत में ढोल मृदंग, झांझ, मंजीरा, ढप, नगाड़ा, पखावज, एकतारा आदि वाद्य यंत्रों का प्रचलन है। 16 वीं शती से मथुरा में रास के वर्तमान रूप का प्रारम्भ हुआ। यहाँ सबसे पहले बल्लभाचार्य जी ने स्वामी हरदेव के सहयोग से विश्रांत घाट पर रास किया। रास ब्रज की अनोखी देन है, जिसमें संगीत के गीत गद्य तथा नृत्य का समिश्रण है। अष्टछाप के कवियों के समय ब्रज में संगीत की मधुरधारा प्रवाहित हुई। सूरदास, नन्ददास, कृष्णदास आदि स्वयं गायक थे। मथुरा, वृन्दावन, गोकुल, गोवर्धन लम्बे समय तक संगीत का केन्द्र बना रहे और यहाँ दूर-दूर लोग संगीत कला सीखने आते रहते हैं।

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श्रावण मास में महिलाओं द्वारा झूला झूलते समय गायी जाने वाली मल्हार गायकी का प्रादुर्भाव ब्रज से ही है। लोकसंगीत में रसिया, ढोला, आल्हा, लावणी, चौबोला, बहल –तबील, भगत आदि संगीत भी समय –समय पर सुनने को मिलता है। इसके अतिरिक्त ऋतु गीत, घरेलू गीत, सांस्कृतिक गीत समय–समय पर विभिन्न वर्गों में गाये जाते हैं।

मथुरा से गोवर्धन तक दर्शनीय स्थल

1- कृष्ण जन्म भूमि
2- द्वारकाधीश मंदिर
3- बाँकेबिहारी मंदिर
4- श्री गरुड् गोविन्द मन्दिर, शाडान्ग वन (छटीकरा)
5- शांतिकुंज
6- बिडला मंदिर
7- राधावल्लभ मंदिर
8- ठकुरानी घाट
9- नवनीतप्रिया जी का मंदिर
10- रमण रेती
11- 84 खम्बे
12- बल्देव
13- बह्मांड घाट महावन
14- चिंताहरण महादेव महावन
15- गोवर्धन
16- जतीपुरा
17- बरसाना
18- नंदगाँव
19- कामवन
20- लोहवन
21- कोकिलावन
22- निधिवन
23- रंगजी का मंदिर
24- गोविंद देव मंदिर व गीता मंदिर (बिड़ला मंदिर) 

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मथुरा के सांसद

1952 - गिरराज सरण सिंह - (निर्दलीय)
1957 -
राजा महेन्द्र प्रताप सिंह - (निर्दलीय)
1962 -
चौधरी दिगम्बर सिंह - (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1967 -
गिरराज सरण सिंह - (निर्दलीय)
1971 -
चकलेश्वर सिंह - (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1977 -
मनीराम बागड़ी - (भारतीय लोक दल)
1980 -
चौधरी दिगम्बर सिंह - (जनता पार्टी -धर्मनिरपेक्ष)
1984 -
मानवेन्द्र सिंह - (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1989 -
मानवेन्द्र सिंह - (जनता दल)
1991 -
स्वामी साक्षी जी - (भारतीय जनता पार्टी)
1996 -
चौधरी तेजवीर सिंह - (भारतीय जनता पार्टी)
1998 -
चौधरी तेजवीर सिंह - (भारतीय जनता पार्टी)
1999 -
चौधरी तेजवीर सिंह - (भारतीय जनता पार्टी)
2004 -
मानवेन्द्र सिंह - (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
2009 -
जयंत चौधरी - (राष्ट्रीय लोक दल)
2014 -
हेमा मालिनी - (भारतीय जनता पार्टी)
2019 -
हेमा मालिनी - (भारतीय जनता पार्टी)

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मथुरा का राजनीतिक सफर

भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में एक हॉट सीट है जिसे एक ऐतिहासिक और धार्मिक पर्यटन स्थल के लिए जाना जाता है। मथुरा लोकसभा सीट पर शुरू में कांग्रेस पार्टी का कब्ज़ा रहा। मगर बीते दो दशक से भारतीय जनता पार्टी मथुरा लोकसभा सीट पर परचम लहरा रही है। वहीं बीजेपी से जीत कर वतर्मान में बीजेपी की हेमा मालिनी मथुरा से सांसद हैं।

1 - आजादी के बाद पहली बार 1952 में लोकसभा के चुनाव हुए थे। पहले चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की। 
2 - 1962 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के चौधरी दिगम्बर सिंह ने जीत हासिल की। 
3 - 1962 से 1977 तक लगातार तीन बार कांग्रेस पार्टी ने मथुरा से विजय हासिल की। 
4 - 1989 में जनता दल के प्रत्याशी ने मथुरा का मैदान मारा।
5 - 1991, 1996, 1998 और 1999 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने मथुरा सीट पर अपना कब्ज़ा जमाया। 
6 - 2004 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर वापसी की और कांग्रेस पार्टी से मानवेन्द्र सिंह ने जीत दिलाई थी। 
7 - 2009 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ी रालोद के जयंत चौधरी ने बड़ी जीत हासिल की। 
8 - 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में अभिनेत्री हेमा मालिनी ने बीजेपी के टिकट पर जीत हासिल की।

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1957 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक सदस्य रहे दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दो लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ा था। अटल बिहारी वाजपेयी ने उत्तर प्रदेश की मथुरा और बलरामपुर सीट नामांकन दाखिल किया। चुनाव नतीजों में अटल बिहारी बलरामपुर सीट जीतने में कामयाब रहे लेकिन मथुरा सीट पर जमानत भी जब्त हो गयी। उस चुनाव में मथुरा में कांग्रेस और जनसंघ के उम्मीदवारों को पछाड़ते हुए स्वतंत्र रूप से लड़े राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने जीत हासिल की थी।

मथुरा का जातीय समीकरण

मथुरा लोकसभा सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो मथुरा वेस्टर्न यूपी में आती है। वहीं इस सीट पर जाट और मुस्लिम वोटरों का वर्चस्व माना जाता है। लोकसभा चुनाव को लेकर मथुरा के जातीय समीकरण तो लेकर यह भी कहा जाता है कि 2014 में इस सीट के जाट और मुस्लिम वोट अलग-अलग बंट गए थे, जिसका फायदा बीजेपी को हुआ। वहीं इस लोकसभा सीट में पांच विधानसभा सीटें छाता, मांट, गोवर्धन, मथुरा और बलदेव आती हैं। यूपी में 2017 के विधानसभा चुनाव में मांट सीट पर बीएसपी को जीत मिली थी, जबकि बाकी सीटों पर बीजेपी का कब्जा है।

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भगवान कृष्ण का जन्म स्थल और पौराणिक रहस्य

भगवान श्रीकृष्ण जन्म स्थान मंदिर वही जगह है जहां भगवान श्रीकृष्ण क्रूर राजा कंस की जेल में प्रकट हुए थे। इसके बाद अपने पिता वासुदेव और मां देवकी को मुक्त कराया। इस अवतार का उद्देश्य बुराई को नष्ट करना, पुण्य की रक्षा करना और संसार में धर्म, नीति का राज्य स्थापित करना था।

मंदिर के इतिहास की बात करें तो यहां पहला मंदिर 80-57 ई.पू. के बीच बनाया गया था। इससे संबंधित महाक्षत्रप सौदास के समय का शिलालेख मिला है। इसमें वसु नामक व्यक्ति द्वारा मंदिर बनवाए जाने की बात कही गई है। दूसरी बार 800 ई. में विक्रमादित्य के समय में यहां मंदिर बनवाया गया। बाद में 1017-18 के बीच मथुरा के कई मंदिरों समेत इस मंदिर को गजनी के महमूद ने तोड़ दिया था।

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बाद में महाराजा विजयपाल के शासन के दौरान सन 1150 में जज्ज नाम के व्यक्ति ने फिर इस मंदिर को बनवाया। बाद में 16 वीं शताब्दी के आरंभ में सिकंदर लोदी ने इसे तोड़ दिया। ऐसा कहा जाता है कि मुगल सम्राट औरंगजेब ने 1669-70 में यहां बने केशवनाथ मंदिर को नष्ट कर आधे हिस्से पर शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया। बाद में 1770 में मुगलों और मराठों के बीच गोवर्धन में युद्ध हुआ इसमें मराठों की जीत हुई और मराठाओं ने यहां फिर से मंदिर निर्माण कराया।

मथुरा का विवाद

शाही ईदगाह मस्जिद मथुरा, शहर के श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर परिसर से सटी हुई है। मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर और शाही ईदगाह में इसी से जुड़ा जमीन का विवाद है। इसी से जुड़ी 13.37 एकड़ भूमि के स्वामित्व की मांग को लेकर कोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिका में पूरी जमीन और मंदिर के पास बनी मस्जिद को हटाने की मांग की गई है। वकील शैलेश दुबे ने बताया कि हिंदू सेना की तरफ से दायर याचिका पर सिविल जज सीनियर डिवीजन तृतीय सोनिका वर्मा ने शाही ईदगाह के विवादित स्थल का सर्वे करने का अमीन को आदेश दिया है और 20 जनवरी तक रिपोर्ट मांगी है।

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इससे पहले 12 अक्टूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ समझौता किया था। इसमें 13.37 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों को रहने देने की बात कही गई थी। अभी इसमें से 10.9 एकड़ जमीन कृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन ईदगाह मस्जिद के पास है। समझौते के तहत मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए कुछ जमीन छोड़ी थी और इसके बदले हिंदू पक्ष ने जमीन दूसरी जगह दी थी। जिसके बाद अब हिंदू पक्ष पूरी जमीन पर कब्जे की मांग कर रहा है।
 

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