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लोकसभा चुनाव : उद्योग नगरी कानपुर का राजनीतिक सफर और इतिहास


यूपी की 80 सीटों में कानपुर सीट का बहुत ही महत्व हैं, कानपुर ज़िला में स्थित एक औद्योगिक महानगर है। यह नगर गंगा नदी के दक्षिण तट पर बसा हुआ है। कानपुर का मूल नाम 'कान्हपुर' था। कानपुर शहर की स्थापना सचेन्दी राज्य के राजा हिन्दू सिंह ने की थी, वहीं ये भी माना जाता हैं कि अवध के नवाबों में शासनकाल के अंतिम चरण में यह नगर पुराना कानपुर, पटकापुर, कुरसवाँ, जुही तथा सीसामऊ गाँवों के मिलने से बना था। वहीं यह भी मान्यता है कि पड़ोस के प्रदेश के साथ इस नगर का शासन भी कन्नौज तथा कालपी के शासकों के हाथों में रहा और बाद में मुसलमान शासकों के 1773 से 1801 तक अवध के नवाब अलमास अली का यहाँ शासन रहा।


लोकसभा चुनाव 2024 : लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियां तोजी से शुरु हो चुकी हैं, लोकसभा संवैधानिक रूप से लोगों का सदन है साथ ही भारत की द्विसदनीय संसद का निचला सदन है, जिसमें उच्च सदन राज्य सभा है। वहीं लोकसभा चुनाव के मुखिया पद पर सभी की नजरें बनी हुई हैं, मगर देखना यह है कि कौन कितना दांव मारेगा यह तो अभी तय नहीं किया जा सकता हैं।

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आपको बताते चले लोकसभा के सदस्य अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक वयस्क सार्वभौमिक मताधिकार और एक सरल बहुमत प्रणाली द्वारा चुने जाते हैं, और वे पांच साल तक या जब तक राष्ट्रपति केंद्रीय मंत्री परिषद् की सलाह पर सदन को भंग नहीं कर देते, तब तक वे अपनी सीटों पर बने रहते हैं। वहीं अगर देखा जाए तो लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की राजनीति की सबसे बड़ी अहमियत होती है, क्योंकि यूपी में बाकी राज्यों के मुकाबले सबसे अधिक यानि की 80 सीटें हैं।

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कानपुर का इतिहास

यूपी की 80 सीटों में कानपुर सीट का बहुत ही महत्व हैं, कानपुर ज़िला में स्थित एक औद्योगिक महानगर है। यह नगर गंगा नदी के दक्षिण तट पर बसा हुआ है। कानपुर का मूल नाम 'कान्हपुर' था। कानपुर शहर की स्थापना सचेन्दी राज्य के राजा हिन्दू सिंह ने की थी, वहीं ये भी माना जाता हैं कि अवध के नवाबों में शासनकाल के अंतिम चरण में यह नगर पुराना कानपुर, पटकापुर, कुरसवाँ, जुही तथा सीसामऊ गाँवों के मिलने से बना था।

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वहीं यह भी मान्यता है कि पड़ोस के प्रदेश के साथ इस नगर का शासन भी कन्नौज तथा कालपी के शासकों के हाथों में रहा और बाद में मुसलमान शासकों के 1773 से 1801 तक अवध के नवाब अलमास अली का यहाँ शासन रहा। वहीं 1773 की संधि के बाद यह शहर अंग्रेजों के शासन में आया, परिणाम स्वरूप देखा जाएं तो 1778 ई. में यहां अंग्रेजों ने गंगा तट पर छावनी बनाई, गंगा तट पर स्थित होने के कारण यहां यातायात और उधोग धंधों की सुविधा थी। जिसके चलते अंग्रेजों ने यहाँ उद्योग धंधों को जन्म दिया जिसके कारण नगर का विकास का प्रारंभ हुआ।

कानपुर लोकसभा सीट का राजनीतिक सफर

कानपुर लोकसभा सीट को लेकर वर्तमान में सीट पर नजर डाले तो, कानपुर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र में पाँच विधानसभा क्षेत्र हैं। वो हैं- गोविन्द नगर, सीसामऊ, आर्य नगर, किदवई नगर, कानपुर छावनी।

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1951-57 तक चुनाव में कांग्रेस के हरिहर नाथ शास्त्री, शिव नारायण टंडन, राजाराम शास्त्री रहे।
1957-60 एसएम बनर्जी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में कानपुर सीट का प्रतिनिधित्व किया।
1962-67 एसएम बनर्जी ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा समर्थित एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव जीता।
1967-71 एसएम बनर्जी
1971-77 एसएम बनर्जी कानपुर से चार बार लोकसभा चुनाव जीते।
1977-80 भारतीय लोकदल से मनोहर लाल जीते।
1980-84 आरिफ मोहम्मद अहमद खान की जीत के साथ कांग्रेस की दोबारा कानपुर संसदीय सीट पर वापसी हुई।
1984-89 नरेश चंद्र चतुर्वेदी
1989-91 सुभाषिनी अली
1991-96 जगतवीर सिंह द्रोण
1996-98 जगतवीर सिंह द्रोण
1998-99 जगतवीर सिंह द्रोण
1999-04 श्रीप्रकाश जायसवाल
2004-09 श्रीप्रकाश जायसवाल
2009-14 श्रीप्रकाश जायसवाल
2014- तक मुरली मनोहर जोशी
2019 से वर्तमान तक सत्‍यदेव पचौरी।

जिले का जातीय समीकरण

कानपुर जिले का यदि जनगना समीकरण देखा जाए तो यहां पर लगभग 5081000 हैं, जिसमें से ग्रामीण की संख्या देखे तो लगभग 1566000 में हैं, वहीं अगर शहरी संख्या की तरफ नजर डाले तो यह संख्या 3016000 हैं। वहीं अनुसूचित जाति को लेकर देखा जाए तो लगभग 817000 में जनसंख्या हैं। वहीं ST की संख्या देखे तो लगभग 3750 संख्या अनुमानित हैं। जिले में लोकसभा सीट में कुल जनसंख्या 16 लाख से अधिक है। इसमें ब्राह्मण वोटरों की संख्या 7 लाख से ज्यादा होने के चलते कानपुर लोकसभा सीट ब्राह्मण बहुल मानी जाती है। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या इस सीट पर चार लाख से ज्यादा एवं दलित, अन्य पिछड़े वर्गों की संख्या तकरीबन दो लाख है।

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संसद सदस्य 

1952  - हरिहर नाथ शास्त्री   - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1952  -
शिव नारायण टंडन  - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1952  -
राजा राम शास्त्री      - प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
1957  -
एसएम बनर्जी         - स्वतंत्र राजनीतिज्ञ
1962  -
 एसएम बनर्जी        - स्वतंत्र राजनीतिज्ञ
1967  -
एसएम बनर्जी         - स्वतंत्र राजनीतिज्ञ
1971  -
एसएम बनर्जी         - स्वतंत्र राजनीतिज्ञ
1977  -
मनोहर लाल           - जनता पार्टी
1980  -
आरिफ मोहम्मद खान - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1984  -
नरेश चन्द्र चतुवेर्दी     - भारतीय राष्टीय कांग्रेस
1989  -
सुभाषिनी अली          - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1991  -
जगत वीर सिंह द्रोण    - भारतीय जनता पार्टी
1996  -
जगत वीर सिंह द्रोण    - भारतीय जनता पार्टी
1998  -
जगत वीर सिंह द्रोण    - भारतीय जनता पार्टी
1999  -
श्रीप्रकाश जयसवाल     - भारतीय जनता पार्टी
2004  -
श्रीप्रकाश जयसवाल     - भारतीय जनता पार्टी
2009  -
श्रीप्रकाश जयसवाल     - भारतीय जनता पार्टी
2014  -
मुरली मनोहर जोशी     - भारतीय जनता पार्टी
2019  -
सत्यदेव पचौरी            - भारतीय जनता पार्टी

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कानपुर के एतिहासिक स्थल

1- जाजमऊ
2- श्री राधाकृष्ण मंदिर
3- जैन ग्लास मंदिर
4- कमला रिट्रीट
5- फूल बाग
6- एलेन फोरस्ट ज़ू
7- कानपुर मैमोरियल चर्च
8- नाना राव पार्क
9- जेड स्क्वायर मॉल
10- श्री श्री राधा माधव मंदिर (इस्कॉन मंदिर)
11- बिठूर
12- साईं मंदिर
13- खेरेश्वर मंदिर
14- लक्ष्मीबाई जन्म स्थल
15- मोतीझील
16- कानपुर वार्टर पार्क
17- सुधांशु आश्रम

18- जेके डेम्पल

19- बाबा आंन्देश्वर मंदिर

उधोग नगरी का उधोग

कानपुर शहर में सबसे पहले ईस्ट इंडिया कंपनी ने नील का व्यवसाय शुरू किया। 1832 में ग्रैंड ट्रंक सड़क के बन जाने पर यह नगर इलाहाबाद से जुड़ गया। 1864 ई. में लखनऊ, कालपी आदि मुख्य स्थानों से सड़कों द्वारा जोड़ दिया गया। ऊपरी गंगा नहर का निर्माण भी हो गया। जिसके चलते यातायात के इस विकास से नगर का व्यापार फिर तेजी से बढ़ा।

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1859 ई. में नगर में रेलवे लाइन का सम्बन्ध स्थापित हुआ। इसके बाद छावनी की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सरकारी चमड़े का कारखाना खुला। 1861 ई. में सूती वस्त्र बनाने की पहली मिल खुली। वहीं द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद नगर का विकास बहुत तेजी से हुआ। यहाँ मुख्य रूप से बड़े उद्योग-धन्धों में सूती वस्त्र उद्योग प्रधान था। चमड़े के कारबार का यह उत्तर भारत का सबसे प्रधान केन्द्र है। ऊनी वस्त्र उद्योग तथा जूट की दो मिलों ने नगर की प्रसिद्धि को अधिक बढ़ाया है। इन बड़े उद्योगों के अतिरिक्त कानपुर में छोटे-छोटे बहुत से कारखानें हैं। प्लास्टिक का उद्योग, इंजीनियरिंग तथा इस्पात के कारखाने, बिस्कुट आदि बनाने के कारखाने पूरे शहर में फैले हुए हैं। 16 सूती और दो ऊनी वस्त्रों में मिलों के सिवाय यहाँ आधुनिक युग के लगभग सभी प्रकार के छोटे बड़े कारखाने थे।

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