नवरात्रि के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी के तप में हो जाएं लीन, देंखे महिमा
देवी ब्रह्मचारिणी की इस स्वरूप की पूजा करने से संयम, आस्था और समर्पण की भावना भक्तों में जागृत होती हैं।
देवी ब्रह्मचारिणी: नवरात्रि के दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती हैं, देवी ब्रह्मचारिणी को तप और ज्ञान की देवी माना जाता हैं, क्योंकि मां भवानी का यह रूप अत्यंत भव्य और ध्यानमग्न हैं जो भक्तों को भक्ति, ज्ञान और तप के मार्ग के प्रशस्त यानी की प्रेरित करता हैं। देवी ब्रह्मचारिणी की इस स्वरूप की पूजा करने से संयम, आस्था और समर्पण की भावना भक्तों में जागृत होती हैं।
देवी ब्रह्मचारिणी का अर्थ
मां भवानी का दुसरा देवी ब्रह्मचारिणी के रूप का अर्थ है, "ब्रह्म" शब्द आध्यात्मिकता और सर्वोच्च ज्ञान को दर्शाता है, और "चारिणी" का अर्थ है देवी के उस रूप को दर्शाता है जो तप और साधना के मार्ग पर चलती हैं। आसान भाषा में समझे तो ब्रह्म (सर्वोच्च ज्ञान) जो जो ब्रह्म के मार्ग पर चलती हैं। जिसकी साधना करने से भक्तों आत्मज्ञान की ओर अग्रसरित होते हैं।
देवी ब्रह्मचारिणी के रूप का वर्णन
देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत सुंदर और दिव्य है। उनका वर्ण स्थायी और प्रकाशमान है। उनके दो हाथ हैं, जिनमें एक हाथ में जप माला और दूसरे हाथ में कमल होता है। जिनका श्रृंगार साधारण और आकर्षक है, जिन्होंने अंगों में सफेद साड़ी धारण की हैं और उनकी जूड़े में चमकीले फूल होते हैं। उनकी आंखों में तप और साधना का भंडार होता है, जिसे देश भक्त मां की साधना करके उनके तप में लीन हो जाते है।
देवी ब्रह्मचारिणी की महिमा
- तप और साधना की देवी
- ज्ञान की प्रदायिका
- संकल्प शक्ति
- भक्तों की रक्षा करने वाली देवी
देवी ब्रह्मचारिणी की कथा
देवी ब्रह्मचारिणी की कथा भी माता पार्वती से संबंधित है। कहा जाता है माता पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने और उन्हें पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था, तब उन्होंने देवी ब्रह्मचारिणी का रूप धारण किया। देवी का तप इतना कठोर था कि धरती के लोग और देव गण भी उनकी तपस्या को देखकर प्रभावित हुए और अपने तप और अटूट संकल्प से भगवान शिव को प्रसन्न किया था, जिसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती की तपस्या को देखकर उन्हें दर्शन दिए शिवजी मां पार्वती की तपस्या के फल में उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया
नवरात्रि की पूजा विधि
नवरात्रि के पहले दिन घर की सफाई करें पूजा स्थल की सफाई करें और देवी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इसके साथ उपवास रखने की परंपरा है। इसे लोग अपनी सामर्थ्य अनुसार रखते हैं। वहीं कुछ लोग अपने सामर्थ के अनुसार व्रत के साथ कलश की स्थापना भी करते हैं और पूजन में फूल, फल, कुमकुम, दीपक, नैवेद्य आदि का प्रयोग करें इसके साथ ही माता को वस्त्र अर्पित करें और श्रृंगार चढ़ाएं। इसके बाद दुर्गा स्तुति और लौंग कपूर से आरती करें।