इलाहाबाद हाईकोर्ट के बड़े फैसले से यूपी बेसिक शिक्षा विभाग को लगा झटका
लखनऊ खंडपीठ ने बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षकों के समायोजन की प्रक्रिया को रद्द कर दिया है
UP Basic Teachers: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच से यूपी बेसिक शिक्षा विभाग को करारा झटका लगा है, क्योंकि इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षकों के समायोजन की प्रक्रिया को रद्द कर दिया है इस फैसले से विभाग द्वारा चल रही समायोजन प्रक्रिया पर रोक लग गई है। बताते चले कि हाईकोर्ट ने बेसिक स्कूलों में तैनात टीचर्स के तबादले को लेकर 26 जून 2024 को जारी शासनादेश को मनमाना बताते हुए ख़ारिज कर दिया है।
जानें हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने क्या कहा
आपको बतादें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच से यूपी बेसिक शिक्षा विभाग को करारा झटका लगा है, हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा- अगर इस पॉलिसी को जारी रखा गया तो सिर्फ जूनियर टीचरों का ही ट्रांसफर होता रहेगा जबकि सीनियर टीचर जिस स्कूल में वहीं बनें रहेंगे... इसके साथ ही हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि गलतियो को सुधारा जाए, वहीं मिली जानकारी के मुताबिक हाईकोर्ट के इस फैसले का असर सीनियर टीचर्स पर भी पड़ेगा।
बताते चले कि विभाग ने स्कूलों में टीचर्स छात्र के अनुपात को बनाए रखने के लिए “लास्ट कम फर्स्ट आउट” ट्रांसफर पॉलिसी अनुच्छेद 14 और 16 के खिलाफ लेकर आई थी, हाईकोर्ट ने 26 जून 2024 के शासनादेश और बेसिक शिक्षा विभाग के 28 जून 2024 के सर्कुलर को जूनियर टीचर्स के लिए भेदभावपूर्ण करार दिया। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा- अगर इस पॉलिसी को जारी रखा गया तो सिर्फ जूनियर टीचरों का ही ट्रांसफर होता रहेगा जबकि सीनियर टीचर जिस स्कूल में वहीं बनें रहेंगे। वहीं कोर्ट के इस फैसले से विभाग में चल रही समायोजन प्रक्रिया पर तुरंत प्रभाव से रोक लग गई है, जिससे बड़ी संख्या में शिक्षक प्रभावित हुए है।
जस्टिस मनीष माथुर ने सुनाया फैसला
वहीं हाईकोर्ट के जस्टिस मनीष माथुर की एकल पीठ ने याची पुष्कर चंदेल समेत सैकड़ों जूनियर शिक्षकों की 21 रिट याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ये फैसला सुनाया, जस्टिस मनीष माथुर की सिंगल बेंच ने सैकड़ों अभ्यर्थियों की ओर से दाखिल याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। कोर्ट ने 26 जून 2024 के शासनादेश और 28 जून 2024 के सर्कुलर के कुछ प्रावधानों को समानता के मौलिक अधिकार और शिक्षा के अधिकार एक्ट का विरोधाभासी बताया। जिसमें ये दावा किया गया था कि इसमें समानता के मौलिक अधिकार के साथ-साथ शिक्षा के अधिकार अधिनियम का भी उल्लंघन करता है।
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कोर्ट ने कहा कि शासनादेश में प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक-छात्र अनुपात बनाए रखने के लिए उस शिक्षक का ही ट्रांसफर किया जाता है, जो सबसे जूनियर होता है, दूसरे स्कूल में भी वह जूनियर होता है। लिहाजा वहां शिक्षक-छात्र अनुपात बिगड़ने पर इस शिक्षक का फिर ट्रांसफर कर दिया जाता है, वरिष्ठ और पुराने टीचर का इस फार्मूले से ट्रांसफर नहीं होता। इस फैसले के कारण 80-90% बेसिक स्कूल प्रभावित होंगे हालांकि, जानकारों का मानना है कि इस आदेश के खिलाफ अपील दायर हो सकती है।
याचिकाकर्ता की ओर से दी गई दलील
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि इन प्रावधानों के अनुपालन में जो शिक्षक बाद में किसी प्राथमिक स्कूल में नियुक्त होता है उसका ही तबादला टीचर छात्र अनुपात को बनाए रखने के लिए किया जाएगा, इस नीति से सिर्फ जूनियर टीचरों को ही ट्रांसफर होता है जबकि सीनियर शिक्षक या फिर जो शिक्षक कई सालों से उसी स्कूल में उनका ट्रांसफर नहीं होता वो अपने ही स्कूल में बने रहते हैं। ये नीति शिक्षकों के सर्विस रूल के भी खिलाफ है।
राज्य सरकार ने इस पर जवाब देते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं के पास ट्रांसफर पॉलिसी को चुनौती देने का अधिकार नहीं है, शिक्षा के अधिकार के तहत शिक्षकों और छात्रों का अनुपात बनाए रकने के लिए ये तबादला या समायोजन नीति जरूरी है।
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