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जानें कब है भगवान परशुराम की जयंती और उसका क्या हैं महत्व


बतादें कि परशुराम जी का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम पहर में पुत्रेष्टि से हुआ था।


भगवान परशुराम :  भगवान परशुराम की जयंती आने वाली है, शास्त्रों की मानें तो परशुराम भगवान को विष्णु भगवान का छठवां अवतार माना जाता है। उन्हें आज भी 8 चिरंजीवी पुरुषों में से एक माना जाता है। ये आठ चिरंजीवी हैं - परशुराम, महर्षि वेदव्यास, अश्वत्थामा, राजा बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और ऋषि मार्कंडेय। इसलिए कहा जाता है कि परशुराम भगवान आज भी इस धरती पर मौजूद है। उनकी जयंती आने वाली अक्षय तृतीया को मनाई जायेगी।

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जानें कब हुआ था भगवान परशुराम का जन्म

बतादें कि परशुराम जी का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम पहर में पुत्रेष्टि से हुआ था। इसलिए हर साल अक्षय तृतीया के दिन यानि वैशाख शुक्ल तृतीया की तिथि पर भगवान परशुराम की जयंती मनाई जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन किए गए पुण्य का प्रभाव कभी खत्म नहीं होता है और इस दिन पूजा करने से साहस में वृद्धि होती है और भय से मुक्ति मिलती है, क्योंकि भगवान परशुराम को साहस का देवता माना जाता है। आपको बतादें कि दादा परशुराम की जयंती 10 मई 2024, यानि आने वाली अक्षय तृतीया शुक्रवार के दिन मनाई जाएगी।

भगवान परशुराम माता रेणुका और ऋषि जमदग्नि के पुत्र हैं। कहा जाता है कि जब वे पैदा हुए तो उनका नाम राम रखा गया था, लेकिन परशुराम महादेव के भक्‍त थे। जिससे प्रसन्न होकर महादेव ने परशुराम को तमाम अस्‍त्र-शस्‍त्र दिए थे, उनका प्रिय शस्त्र फरसा भी उन्ही में से एक है, जिसे परशु भी कहा जाता है। जिसके बाद से उन्हें परशुराम कहा जाने लगा।

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क्रोध बना क्षत्रियों के साथ माता के अन्त का कारण

जैसा कि सभी जानते है कि भगवान परशुराम जी का जन्म ब्राह्राण कुल में हुआ था। मगर परशुराम जी महादेव के भक्त होने के साथ ही बचपन से ही बड़ें कोध्री स्वभाव के थे। वहीं पौराणिक कथाओं के अनुसार परशुराम ने अपने माता-पिता के अपमान का बदला लेने के लिए 21 बार इस धरती से क्षत्रियों का अन्त करके धरती से क्षत्रिय विहीन कर दिया था।

भगवान परशुराम को क्रोध इतना आता था कि उनका क्रोध माता रेणुका के वध का कारण भी बन गया था। मान्यता है कि परशुराम अपने पिता के आज्ञाकारी पुत्र थे। एक बार उनके पिता ने उन्‍हें मां का वध करने की आज्ञा दी तो परशुराम ने अपनी माता की जान ले ली। हालांकि बाद में उन्‍होंने अपने पिता से ही वरदान मांगकर मां को दोबारा जीवित करवाया था।

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श्री कृष्ण को सौंपा था सुदर्शन चक्र

माना जाता है कि द्वापरयुग में जब भगवान श्रीकृष्‍ण के रूप में विष्‍णु भगवान ने जन्‍म लिया, तब श्रीकृष्‍ण शिक्षा ग्रहण करने के बाद परशुराम से मिले। तब परशुराम ने ही भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण को परशुराम जी ने ही दुष्‍टों और दानवों का वध करने के लिए सुदर्शन चक्र सौंपा था और कहा था कि यह युग अब आपका है।

शलोक- अश्वत्थामा बलिव्यासो हनूमांश्च विभीषण:।

कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥

सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।

जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।

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