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जगन्नाथ रथ यात्रा में शामिल होंगी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, जानें जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व


हर साल हिंदू कैलेंडर के आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाई जाने वाली रथ यात्रा जगन्नाथ मंदिर का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है


Jagannath Yatra 2024: ओडिशा के पवित्र तटीय शहर पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन हर साल होता हैं, ठीक इसी तरह इस साल भी 7 जुलाई दिन रविवार को रथ यात्रा शुरू होने वाली है जिसका भव्य वार्षिक रथ यात्रा या रथ उत्सव के लिए मंच तैयार है।

जानें क्यों मनाया जाता है त्योहार

जैसा कि हम सभी जानते है कि “हर साल हिंदू कैलेंडर के आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाई जाने वाली रथ यात्रा जगन्नाथ मंदिर का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है, जब पवित्र त्रिदेव अपने जन्मस्थान गुंडिचा मंदिर की ओर वार्षिक नौ दिवसीय प्रवास पर निकलते हैं, जो जगन्नाथ मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर दूर है। सभी संप्रदायों और पंथों के भक्त रथ यात्रा के दौरान दिव्य भाई-बहनों की एक झलक पाते हैं।

रथ यात्रा में शामिल होंगी राष्ट्रपति द्रौपदी

वहीं आधिकारिक विज्ञप्ति द्वारा शुक्रवार को मिली जानकारी की माने तो इस बार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू सात जुलाई को पुरी में रथ यात्रा में शामिल होंगी। बताते चले कि यह जानकारी राष्ट्रपति भवन द्वारा जारी विज्ञप्ति में दिया गया हैं जिसमें कहा गया कि राष्ट्रपति मुर्मू 6 से 9 जुलाई तक ओडिशा का दौरा करेंगी। वह 6 जुलाई को भुवनेश्वर में उत्कलमणि पंडित गोपबंधु दास की 96वीं पुण्यतिथि में शामिल होंगी। इसमें कहा गया है कि 8 जुलाई को वह उदयगिरि गुफाओं का दौरा करेंगी और विभूति कानूनगो कॉलेज ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट्स और उत्कल यूनिवर्सिटी ऑफ कल्चर के छात्रों के साथ बातचीत करेंगी।

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जानें जगन्नाथ की मान्यता

पौणाणिक परंपरा की मानें तो हर साल भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा तीनों को हिंदू कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा के दिन स्नान यात्रा के दौरान सुगंधित जल से भरे 108 घड़ों से स्नान कराया जाता जिसके बाद जगन्नाथ भगवान बीमार पड़ जाते हैं,और 
देवता एकांत में रहते हैं और भक्तों को 15 दिनों तक पवित्र त्रिदेवों के दर्शन करने की अनुमति नहीं होती है। जिसे ‘अनसार’ अवधि के रूप में जाना जाता है, जब ‘दैतापति’ नामक सेवकों के एक विशेष समूह द्वारा कुछ गुप्त अनुष्ठान किए जाते हैं।

पवित्र भाई-बहनों को आमतौर पर आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ, फल आदि दिए जाते हैं ताकि वे पवित्र स्नान के कारण होने वाले बुखार से जल्दी ठीक हो जाएँ। पूरी तरह से ठीक होने के बाद देवता भक्तों को दर्शन देते हैं जिसे लोकप्रिय रूप से ‘नव यौवन दर्शन’ कहा जाता है जो आमतौर पर रथ यात्रा से एक दिन पहले मनाया जाता है। आपको बतादें कि पुरी में भगवान जगन्‍नाथ का 800 साल पुराना मंदिर है और यहां भगवान श्रीकृष्‍ण जगन्‍नाथ के रूप में विराजते हैं।

जानें कैसे शुरू हुई जगन्नाथ रथ यात्रा

जगन्नाथ रथ यात्रा को लेकर एक बहुत ही पौराणिक कथा है बताते चले धार्मिक मान्‍यता की मानें तो एक बार बहन सुभद्रा ने अपने भाइयों कृष्‍ण और बलरामजी से नगर को देखने की इच्‍छा प्रकट की। फिर दोनों भाइयों ने बड़े ही प्‍यार से अपनी बहन सुभद्रा के लिए भव्‍य रथ तैयार करवाया और उस पर सवार होकर तीनों नगर भ्रमण के लिए निकले थे। रास्‍ते में तीनों अपनी मौसी के घर गुंडिचा भी गए और यहां पर 7 दिन तक रुके और उसके बाद नगर यात्रा को पूरा करके वापस पुरी लौटे। तब से हर साल तीनों भाई-बहन अपने रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं और अपनी मौसी के घर गुंडीचा मंदिर जाते हैं। इनमें सबसे आगे बलराम जी का रथ, बीच में बहन सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे जगन्नाथजी का रथ होता है।

मुख्यमंत्री ने की छुट्टी घोषित

वहीं रथ यात्रा को लेकर राज्य सरकार ने यात्रा के अगले दिन भी छुट्टी घोषित की है, क्योंकि रथों को खींचने का काम अगले दिन भी जारी रहेगा। यात्रा को लेकर मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने मंगलवार को घोषणा की, “यह एक अनोखी और दुर्लभ रथ यात्रा है, जो दो दिनों (7-8 जुलाई) तक मनाई जाएगी। इसलिए, रथ यात्रा के अगले दिन छुट्टी घोषित करने का निर्णय लिया गया है।” इसके साथ ही मुख्यमंत्री माझी ने समीक्षा बैठक की और रथ यात्रा उत्सव के सुचारू और परेशानी मुक्त संचालन के लिए सेवकों, जिला प्रशासन और स्थानीय जनता सहित सभी हितधारकों से सहयोग मांगा।

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