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नवरात्रि के छठे दिन देवी कात्यायनी को करें प्रसन्न


चार भुजाओं वाली देवी के एक हाथ में तलवार जो शक्ति और विजय का प्रतीक है, एक हाथ में ढाल जो रक्षा का प्रतीक है, एक हाथ में कमल का पुष्प जो सच्चाई और भक्ति का प्रतीक हैं


देवी कात्यायनी: हिंदू धर्म में नवरात्रि के छठे दिन देवी कात्यायनी की पूजा होती हैं, जो मां दुर्गा के रुप में से एक रुप हैं। माता कात्यायनी को युद्ध, शक्ति और विजय की देवी माना जाता है। देवी का विशेष पूजन शारदीय नवरात्रि में किया जाता हैं। माता को लेकर कहा जाता है कि देवी कात्यायनी का जन्म ऋषि कात्यायन की पुत्री के रूप में हुआ था उन्हें विशेष रूप से शक्ति, साहस और भक्ति की देवी माना जाता है। 

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देवी के रूप के वर्णन को लेकर कहा जाता है कि चार भुजाओं वाली देवी जिनमें से एक हाथ में तलवार, दूसरा हाथ में ढाल, तीसरे हाथ में फूल और चौथे हाथ में जप माला होती है। माना जाता है कि कात्यायनी की उपासना से भक्तों को संतान सुख, शिक्षा, और समर्पण की प्राप्ति होती है। उनकी आराधना करने से भक्तों को जीवन में सफलता और सुख-शांति प्राप्त होती है।

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देवी कात्यायनी का रूप का वर्णन

देवी कात्यायनी का स्वरूप पीले या सुनहरे रंग का अत्यंत आकर्षक मनमोहक और बेहद ही शक्तिशाली है, चार भुजाओं वाली देवी के एक हाथ में तलवार जो शक्ति और विजय का प्रतीक है, एक हाथ में ढाल जो रक्षा का प्रतीक है, एक हाथ में कमल का पुष्प जो सच्चाई और भक्ति का प्रतीक हैं और एक हाथ में देवी के जप माला  जिससे देव मां अपनी सभी भक्तों को आशीष प्रदान करती हैं। देवी कात्यायनी सवारी सिंह है जो शक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता हैं। करुणा भरी मां कात्यायनी की पूजा करने से भक्तों को सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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देवी कात्यायनी की महिमा

1. शक्ति और विजय की देवी

2. दुष्टों का नाश करने वाली देवी

3. भक्तों की इच्छाएँ पूर्ण करने वाली देवी

5. संरक्षण और आशीर्वाद प्रदान करने वाली देवी

6. संसार से मोक्ष दिलाने वाली देवी

7. अनुग्रह और कृपा बरसाने वाली देवी

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देवी कात्यायनी  की कथा

देवी कात्यायनी की कथा को लेकर कहा जाता है पौराणिक समय में देवी दुर्गा के महिषासुर मर्दिनी रूप से जुड़ी हुई है। कहा जाता हैं कि देवी कात्यायनी का जन्म ऋषि कात्यायन की पुत्री के रूप में हुआ था। एक समय की बात है त्रिलोक में महिषासुर नामक एक शक्तिशाली दानव ने आतंक मचाया। उसने भगवान ब्रह्मा से यह वरदान प्राप्त किया था कि उसे किसी पुरुष के हाथों पराजित नहीं किया जा सकेगा। जिसका फायदा उठा कर वह सभी देवताओं को परेशान किया करता था मगर किसी में महिषासुर को पराजित करने के साहस नहीं था। महिषासुर की दुष्टता से त्रिलोक में हाहाकार मच गया। तब देवताओं ने एकत्र होकर माँ दुर्गा की महिमा का गुणगान किया और महिषासुर से छुटकारा पाने की प्रार्थना की। तब देवी ने कात्यायन ऋषि के यज्ञ से प्रकट होने का निर्णय लिया। देवी का यह अवतार दिव्य शक्ति से भरा हुआ था जिन्हें कात्यायनी नाम से जानी जाने लगा।

कात्यायनी ने महिषासुर का सामना करने के लिए युद्ध की तैयारी की और शक्तियों और अस्त्रों से महिषासुर दानव के खिलाफ युद्ध शुरू किया। महिषासुर ने कई रूपों में देवी से युद्ध किया, लेकिन देवी की शक्ति और साहस के आगे वह टिक नहीं सका। अंततः देवी ने महिषासुर का वध हुआ और देवी महिषासुर मर्दिनी कहाई जाने लगी।

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देवी कात्यायनी की पूजा विधि

नवरात्रि के दौरान, विशेष रूप से अष्टमी और नवमी को देवी कात्यायनी की पूजा का महत्व माना जाता हैं। देवी कात्यायनी के आशीर्वाद से जीवन में सुख, समृद्धि, और सफलता का संचार होता है।

देवी कात्यायनी के मंत्र का जाप करना चाहिए, पूजा के समय मन में भक्ति और श्रद्धा रखें।

"या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥ वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्। सिंहारूढा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्विनीम्॥"

नवरात्रि के पहले दिन घर की सफाई करें पूजा स्थल की सफाई करें और देवी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इसके साथ उपवास रखने की परंपरा है। इसे लोग अपनी सामर्थ्य अनुसार रखते हैं। वहीं कुछ लोग अपने सामर्थ के अनुसार व्रत के साथ कलश की स्थापना भी करते हैं और पूजन में फूल, फल, कुमकुम, दीपक, नैवेद्य आदि का प्रयोग करें इसके साथ ही माता को वस्त्र अर्पित करें और श्रृंगार चढ़ाएं। इसके बाद दुर्गा स्तुति और लौंग कपूर से आरती करें। 

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