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शारदीय नवरात्रि: भक्ति-भाव से करें मां दुर्गा की आराधना, जानें पूजा विधि और महत्व


मां भगवती की पूजा के लिए नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है जिसे घटस्थापना भी कहा जाता है।


शारदीय नवरात्रि: पूरे भारतवर्ष में शारदीय नवरात्रि बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाती है। इस वर्ष शारदीय नवरात्रि पर्व कल यानी की 3 अक्टूबर से प्रारंभ हो रहा हैं।  नवरात्रि के इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नाम की झांकियां भी निकाली जाती हैं इसके साथ ही मां भगवती की पूजा के लिए नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है जिसे घटस्थापना भी कहा जाता है। 

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वहीं सभी लोग अपने-अपने घरों में माता के आराधना पूजन करेंगे। ऐसे में कलश स्थापना का समय सुबह  7 बजकर 30 मिनट से 9 बजकर 30 मिनट तुला लग्न में स्थापना करने से लक्ष्मी नारायण योग बनेगा। उस मुहूर्त में पूजन करना उत्तम रहेगा और मां भगवती की विशेष कृपा प्राप्त होगी।

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वहीं आपको बताते चले कि शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर से लेकर 12 अक्टूबर तक रहेंगा इसके बाद दशहरा लग जाएंगा इस दिन लंका के रावण के अंत तो हुआ था साथ ही मां भगवती ने नौ के दिनों के युद्ध के बाद देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था।

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नवरात्रि में मां के नौ रूप

प्रथम दिन- देवी शैलपुत्री
दूसरे दिन- देवी ब्रह्मचारिणी
तीसरे दिन- देवी चंद्रघंटा
चौथे दिन- देवी कूष्मांडा
पाँचवे दिन- देवी स्कंदमाता
छठे दिन- देवी कात्यायनी
सातवें दिन- देवी कालरात्रि
आठवें दिन- देवी महागौरी
नवम दिन- देवी सिद्धिदात्री

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शारदीय नवरात्रि का महत्व

शारदीय नवरात्रि को लेकर हमारी संस्कृति में मान्यता है कि हर वर्ष हिंदू कैलेंडर के अनुसार आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होती है और नवमी तक चलती है। यह पर्व माँ दुर्गा की आराधना का समय होता है और इन दिनों मां के शक्ति और आध्यात्मिकता का प्रतीक की आराधना की जाती है।

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मान्यता है कि मां शक्ति की नवरात्रि में देवी दुर्गा के नौ रूपों की आराधना पूजा की जाती है जिससे शक्ति, साहस और आत्मविश्वास का प्रतीक माना जाता हैं। वहीं नवरात्रि के अवसर के दौरान जो भक्त भक्ति भाव से उपवास, साधना और ध्यान करता है उसकी आध्यात्मिक उन्नति होती है और मां भवानी के आंचल की छाया सदैव बनी रहती हैं। वहीं कुछ जगहों पर माता के लिए जागरण, गरवा, चौकी से अराधना की जाती हैं। यह आत्मिक शुद्धि और सामाजिक एकता का भी प्रतीक है।

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नवरात्रि की पूजा विधि

नवरात्रि के पहले दिन घर की सफाई करें पूजा स्थल की सफाई करें और देवी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इसके साथ उपवास रखने की परंपरा है। इसे लोग अपनी सामर्थ्य अनुसार रखते हैं। वहीं कुछ लोग अपने सामर्थ के अनुसार व्रत के साथ कलश की स्थापना भी करते हैं और पूजन में फूल, फल, कुमकुम, दीपक, नैवेद्य आदि का प्रयोग करें इसके साथ ही माता को वस्त्र अर्पित करें और श्रृंगार चढ़ाएं। इसके बाद दुर्गा स्तुति और लौंग कपूर से आरती करें। 

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