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हरिद्वार गंगा जल नहीं रहा पीने योग्य, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने किया दावा

Haridwar Ganga Jal: गंगा जल को मोक्ष दायिनी कहते है इसलिए लोग अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए हरिद्वार गंगा में तर्पण के लिए जाते हैं। मगर क्या आप जानते है पितरों को मोक्ष दिलाने वाली गंगा अब पूरी तरह स्वच्छ नहीं रह गई हैं। वहीं गंगा की स्वच्छता के लिए सरकार की ओर से तमाम कदम उठाए गए, सामाजिक संगठनों ने भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया हैं इसके बाद भी गंगा की स्वच्छता पूरी तरह से वापस नहीं आ पाई हैं।

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बोर्ड ने जारी की रिपोर्ट

आपको बता दें कि हरिद्वार गंगा जल को लेकर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की हालिया रिपोर्ट में यह पाया गया है कि हरिद्वार में गंगाजल पीने योग्य नहीं है। जबकि हर साल लाखों की तादाद में श्रद्धालु गंगा जल को पीते भी हैं, श्रद्धा भरी डुबकी हरिद्वार की गंगा जी में लगाते हैं। पितरों के तर्पण के साथ गंगाजल से आचमन भी करते हैं। लेकिन वैज्ञानिक के दृष्टि से देखे तो हरिद्वार में गंगा का जल पीना हानिकारक हो सकता हैं।

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क्योंकि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मासिक सर्वे में गंगाजल में फिकल कॉलीफॉर्म यानि अपशिष्ट की मात्रा अधिक पाई गई है, रिपोर्ट में गंगाजल बी श्रेणी का बताया गया है। इसका मतलब है कि गंगाजल में स्नान तो किया जा सकता है, लेकिन वह पीने के लायक नहीं है।

जानें क्या बोले उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

आपको बतादें कि उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी राजेंद्र सिंह के अनुसार उन्होंने हरिद्वार के ऊपर और नीचे यानी यूपी बॉर्डर तक करीब आठ जगहों पर गंगा के पानी की हर महीने जांच करती है, जांच का डाटा देखा तो एक बात साफ होती है कि हरिद्वार में गंगा के पानी की क्वालिटी B क्लास की है। क्योंकि हरिद्वार में घुलनशील अपशिष्ट (फेकल कोलीफॉर्म) और घुलनशील ऑक्सीजन (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) का स्तर मानक से अधिक मिला है, नहाने योग्य नदी जल के लिए ऑक्सीजन का मानक पांच मिली ग्राम प्रति लीटर होता है। इस हिसाब से उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक गंगा में मिलने वाला कॉलीफॉर्म 120 एमपीएन तक है, यानी गंगा का जल नहाने योग्य है, लेकिन पीने योग्य नहीं है।

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क्षेत्रीय अधिकारी ने रिपोर्ट में किया दावा

इसके साथ ही रिपोर्ट जारी के साथ ही उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एक और बड़ा दावा किया है, उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक गंगा की हालत में पिछले पांच सालों से अंदर काफी सुधार हुआ है। यानी में प्रदूषण बढ़ने के बजाए कम हुआ है। क्योंकि गंगाजल को शुद्ध करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने नमामि गंगे सरीखी योजनाएं चलाई हैं। जिसके बाद काफी हद तक गंगा के प्रदूषण में कमी आई, लेकिन आज भी हरिद्वार में गंगा में गिरते नालों को देखा जा सकता है। साथ ही कई एसटीपी ऐसे हैं जिनसे पानी बिना ट्रीटमेंट के सीधा गंगा में जा रहा है।

वहीं क्षेत्रीय अधिकारी राजेंद्र सिंह ने दावा किया है कि उनकी टीम लगातार गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के प्रयास में लगी हुई है, हरिद्वार में जिन जगहों से यह सैंपल लिए गए हैं, उनमें हरकी पौड़ी क्षेत्र के साथ-साथ सप्त ऋषि, रंजीतपुर और सुल्तानपुर के अलावा अन्य स्थान मौजूद हैं।

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