ज्योतिष-धर्म

हर हफ्ते देखे ज्योतिष ज्ञान, जानें मनुष्य अपने भाग्य का कैसे कर सकता है निर्माण

ज्योतिष  ज्ञान: राम राम जी ज्योतिष ज्ञान में देखे हर हफ्ते सुझाव, इसके साथ ही आज के ज्योतिष ज्ञान में जानेंगे कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माण स्वंय कैसे कर सकता है। आपने भगवत गीता के श्लोक में पढ़ा होगा…

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शलोक-

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।

अर्थ-

श्रीकृष्ण कहते है कि कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फलों में कभी नहीं… इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो। कर्तव्य-कर्म करने में ही तेरा अधिकार है फलों में कभी नहीं। अतः तू कर्मफल का हेतु भी मत बन और तेरी अकर्मण्यता में भी आसक्ति न हो।

इसलिए कहा जाता है मनुष्य अगर चाहें तो अपने कर्म के जरिए अपने भाग्य का निर्माण कर सकते है और मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता बन सकते है। इसको विस्तार से समझने के लिए जानें कि अकर्म, विक्रम, कर्म क्या है।

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कर्म:- कर्म करने से हमे फल मिलता।
अकर्म :-  जिस कर्म को प्रभु की सेवा समर्पित कर दें, फल वही देगें। 
विक्रम :-  जो कर्म स्वतं हो रहा है बिना हमारे किए उसे विक्रम होता है।

वहीं ज्योतिष की मानें तो भाग्य का निर्माण विक्रम से होता है, जैसे कि बैक के लॉकर की चाभी एक खाता धारक के पास होती है, और एक चाभी बैंक मैनेजर के पास होती है,  वैसे जब खाता धारक बैंक मैनेजर के पास जाता है लॉकर खोलने के लिए तो दोनो चाभी लगने पर लाकर खुलता है अन्यथा नहीं खुलता हैं। 

ठीक उसी प्रकार मनुष्य के अकर्म जब भगवान की कृपा से जुड़ जाता है तो भाग्य की चाभी लग जाती हैं, और मनुष्य का भाग्य खुल जाता है। वहीं ज्योतिष से जूड़ी विशेष जानकारी के लिए सेवा में राम नजर मिश्र ज्योतिषाचार्य से 9415126330, 6386254344 से संपर्क करें।
 

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