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जानें हीरामंडी की अनसुनी वो कहानी, जो लीला भंसाली की वेब सीरीज में आएंगी नजर


आईये जानते है हीरामंडी की वो सच्ची कहानी जो आपके भी रूंह को झकझोर देगी।


Heeramandi Story : हीरामंडी की एक ऐसी कहानी जिसे सुन कर आप उस दुनिया को भी देख सकेंगे जिससे आम दुनिया भी परे रहती है। यह ऐसी दुनिया है जहां कई जिंदगियां मजबूरी में ऐसी लाइफ जीती है, जिसे हम देखना और सुनना भी लोग पसंद नहीं करते है। इसी सच्ची कहानी को लेकर फिल्म प्रोड्यूसर-डायरेक्टर संजय लीला भंसाली OTT प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स (Netflix) के लिए वेब सीरीज ‘हीरा मंडी’ बना रहे हैं। वहीं भंसाली की माने तो इस कहानी पर सीरीज बनाने का आईडिया 14 साल पहले आया था। मगर अब यह कहानी ओटीटी पर अब धमाल मचाने के लिए तैयार है।

आपको बतादें कि संजय लीला भंसाली की फ़िल्म ‘हीरा मंडी’ (Heeramandi) जो ‘पाकिस्तान’ की रेडलाइट एरिया की वो कहानी है जिसकी सच्चाई लोगों से कोसो दूर है, इसे लाहौर के रेडलाइट एरिया को ‘शाही मोहल्ला’ भी कहा जाता है। ऐसे में आईये जानते है हीरामंडी की वो सच्ची कहानी जो आपके भी रूंह को झकझोर देगी।

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‘हीरा मंडी’ की कहानी

‘हीरा मंडी’ यह कहानी कहीं और की नहीं हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की है, हीरामंडी कोई काल्पनिक नाम नहीं है बल्कि पाकिस्तान स्थित लाहौर के रेडलाइट एरिया है। अगर आपके मन में भी हीरामंडी के नाम को लेकर सवाल है तो बतादें कि सिख महाराज रणजीत सिंह के मंत्री हीरा सिंह के नाम पर इस इलाके का नाम हीरामंडी रखा गया था। कहा जाता है कि यहां पर हीरा सिंह ने पहले अनाज मंडी का निर्माण कराया था और इसके बाद उन्होने यहां पर तवायफ़ों को बसेरा बना दिया था। जिसके बाद यह मंडी घुंघरुओं की छनकार से गुजने लगी। असल में हीरामंडी की कहानी तवायफों के कोठों का मोहल्ला बनने से लेकर एक बड़ा व्यापार केंद्र बनने तक की है।

जानें मुगलकाल की हीरामंडी की कहानी

जब यहां पर मुगलों का शासन था तब भी यह हीरामंडी थी, तब मुग़लकाल के समय अफ़गानिस्तान और उजबेकिस्तान जैसी जगहों से महिलाओं को इस महौल्ले में लाया जाता था, मुग़लकाल में वो संगीत, नृत्य, तहजीब और कला से जुड़ी हुई थीं। मगर विदेशियों के आक्रामण के दौरान ‘शाही मोहल्ले’ में बसे तवायफ़खानों को उजाड़ा जाने लगा। इसके बाद धीरे-धीरे यहां वेश्यावृति पनपने लगी और अब वो वक़्त भी आ चुका है जब हैं किन्नरों का डांस देखा जाता है। हांलाकि, 1947 के बाद सरकार ने इलाके में आने वाले ग्राहकों के लिये कई सुविधाएं मुहैया कराईं थीं, लेकिन फिर भी सफलता नहीं मिली।

हीरामंडी का जो माहौल रहा है, उस पर तवायफों के अलग-अलग दावे रहे हैं। यहां कई महिलाएं हैं जो सिर्फ मुजरा करती हैं, उनका दावा है कि वो कभी जिस्मफरोशी के धंधे में नहीं उतरीं खुद को इससे अलग रखा है, रात 11 से 1 बजे के बीच मुजरा करके ही जीवन जीती चली आई हैं, पीढ़ी दर पीढ़ी इसी काम को आगे बढ़ाती आई है। वे कहती हैं, हम प्रॉस्टिट्यूट्स का विरोध करते हैं। वहीं, कुछ महिला ऐसी भी हैं जो कहती हैं, हम पेट पालने के लिए सेक्स वर्कर बने हुए हैं, क्योंकि यही हमारी रोजी-रोटी है।

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बताया जाता है हीरा मंडी दिन के समय पाकिस्तान की एक बाजार की तरह नजर आती है, जहां आपको लजीज खाना मिलेगा। मुगलकाल में राजाओं के पैर की शोभा बढ़ाने वाले खुस्सा भी मिलेंगे। यह एक खास तरह का फुटवियर है, मगर जैसे जैसे रात होती है वैसे वैसे इस मंडी में घुंघरुओं महफिल सजती है।

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जानें कैसे बना 'रेड लाइट एरिया’

बताते चले कि सिख राज खत्म होने के बाद यह इलाका ब्रिटिश राज का हिस्सा हो गया, जिसके बाद अंग्रेजों ने ‘तवायफों’ के काम को अलग नजरिए से देखा और ये इलाका पूरी तरह से ‘रेड लाइट एरिया’ बनने लगा। आजादी के बाद पाकिस्तान में इस इलाके को बंद करने की कई कोशिश हुईं। लेकिन ये अब भी हजारों सेक्स वर्कर की आमदनी का जरिया हैं। वहीं वर्तमान की हालात ये हैं कि लाहौर मेंखुले आम इस जगह का नाम लेने में भी लोगों को शर्म महसूस होती है, यहां आज भी शाम होते ही शाही मोहल्ला जगमग हो जाता है, और यहां कस्टमर पहुंचते हैं और सेक्स वर्कर्स को ढूंढते नजर आते हैं।

बताया जाता है कि 90 के दशक के बाद हीरा मंडी की नींव से ईंटे दरकती ही चली गईं। 2010 में यहां तरन्नुम सिनेमा के आसपास दो बम धमाके हुए थे और पूरे इलाके में दहशत का माहौल हो गया और जो बचाकुचा बिजनेस था वो पूरी तरह से ठप्प हो गया। इसलिए बताया जाता है कि सीरिज में आ रही संजय लीला भंसाली की कहानी बंटवारे से पहले की कहानी है, जिसमें हीरा मंडी के ओरिजिनल म्यूजिक कल्चर पर ही फोकस होगा।

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तवायफों के महौले में एक बार हुई थी मोहब्बत..

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एक समय ऐसा भी आया था जब तवायफों के महौले में मोहब्बत के भी फूल खिले थे, यह बात 1799 की है जब रणजीत सिंह नाम के एक 22 वर्षीय मिसलदार ने लाहौर पर कब्जा कर लिया और 1801 में खुद को पंजाब का महाराजा घोषित कर दिया। उन्होंने तवायफों की संस्कृति और उनके दरबारी डांस सहित मुगल शाही रीति-रिवाजों को फिर से शुरू किया। एक बार फिर, शाही मोहल्ले की तवायफों को शाही दरबार में मौका मिला। 

उस दौरान 1802 में, रणजीत सिंह को मोरन नाम की एक मुस्लिम तवायफ से प्यार हो गया, जिसके कारण उन्होंने शाही मोहल्ले के पास पापड़ मंडी में एक अलग हवेली बना ली। 1839 में सिंह की मौत के बाद, जनरल से प्रधानमंत्री बने हीरा सिंह डोगरा ने शाही मोहल्ले को अपने तरीके से चलाना शुरू किया।

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