जानें हिन्दू धर्म का महत्व... देखे होलिका का दहन और होली खेलने का शुभ मूहुर्त
कहा जाता है भद्रा के बाद होलिका दहन करना चाहिए। बतादे कि इस वर्ष को होली बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि रविवार की होली सभी बाधाओं को नष्ट कर
होलिका दहन :- होलिका दहन करने के लिए सबको यह चिंता होगी की आखिर कार होलिका दहन का क्या शुभ मुहूर्त है और कब होलिका दहन कर सकते है और कब होली कब खेल सकते है। बतादें कि 24-03-2024 की सुबह पूर्णमाशी लग रही है, वहीं 9 बजकर 56 मिनट से साथ में भद्र भी लग रहा है, जो रात 23 बजकर 14 मिनट तक रहेगा। उसके बाद होलिका दहन का शुभ मुहूर्त है जिसमें होलिका दहन का कार्यक्रम किया जाएगा।
जानें होली खेलने का शुभ दिन
कहा जाता है भद्रा के बाद होलिका दहन करना चाहिए। बतादे कि इस वर्ष को होली बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि रविवार की होली सभी बाधाओं को नष्ट कर के आप का जीवन सुंदर बनाएगी। वहीं दूसरे दिन 25 तारीख को 12 बजकर 31 मिनट तक पूर्णमा रहेगा, उसके बाद परेवा रहेगा, बतादे कि होली परेवा में खेली जाएगी, दूसरे दिन 26 तारीख दिन मंगलवार को सुबह परेवा मिलेगा उसी दिन होली खेलने का बिधान बनाएं जाए।
होलिका दहन के दिन परिवार में करें यह उपाय
आप सभी अपने परिवार खुशियां लाने के लिए और परिवार की सभी बाधांओं को दूर करने के लिए परिवार के सभी लोगों को अपने ऊपर से सुखा नारियल लाल कपडे में बांध कर पीला सरसो लेकर 7 वार विपरीत दिशा से उतार कर होलिका में डाले। इसके सात गौ का उपला, नया अन्न गेहूं कि बाली, चना, गन्ना आदि के साथ मिष्ठान अबीर से होलिका का पूजन करें। साथ ही नया अन्न की आहुति दे, इसके साथ ही घर में होलिका की आग लाये उससे पूरे घर में घुमाएं इसका धूंआ घर की निगेटिव ऊर्जा नष्ट कर देगी और घर में परिवार में खुशी का माहौल होगा धन धान्य की वृद्धि होगी।
इसके बाद दूसरे दिन सोमवार को दिनांक 25 मार्च को 12 बजकर 31 मिनट के बाद से मंगलवार सुबह तक परेवा लगेगा तब होली की राख, अबीर, गुलाल, रंग आदि से होली खेली जाएगी, जिसमें लोगो से गले मिलकर बधाई दी जाएगी।
आईये जानें हिन्दू धर्म का महत्व
1- होली का पर्व क्यो मनाते है...कहा जाता है कि हमारे ग्रंथो में हिन्दू धर्म के चार वर्ण, चार पर्व बहुत ही महत्व पूर्ण है। मान्यता है कि भगवान के मुख से पहला पर्व रक्षा बंधान पर्व जो व्रतबंध कहा जाता है, जिसमें नियम में रहना ब्राह्मण अपने शिष्यों को संदेश देता है। आप अपनी मर्यादा का पालन करें और परिवार के साथ जीवन जीए।
2- इसके बाद भगवान के भुजाओ से दूसरा पर्व विजय दशमी उसमें क्षत्री विजय उत्सव मानता है और समाज की छाया में रूप में रक्षा करता है। हम आप के सुरक्षा की जिम्मेदारी लेते है।
3- इसके बाद भगवान के उदार से तीसरा पर्व दीपावली उसमें धनिक वर्ग वैश्य समाज लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए पूजा करते है। बताया जाता है कि वैश्य समाज को भामा शाह में धन दे कर उनका पालन पोषण करता, हर समस्या का समाधान करता रहा।
4- भगवान के पैर से सेवा भाव से चौथा पर्व होली इसमें पूरे शरीर के साथ मिलकर सबका साथ सबका सहयोग से समाज की रचना हुई, सभी लोग होली के रंग में रंग कर एक दूसरे के गले मिलने और पुरानी गलती को भूलकर गले मिलने की परंपरा है, होली अब नए अन्न का पूजन कर नया वर्ष नए संवत्सर के साथ मनाए यही हमारी संस्कृति है