लोकसभा चुनाव : बाराबंकी जिले का शासकीय और राजनीतिक इतिहास
बाराबंकी जिले का मुख्य व्यवसाय कृषि है। यहां कि मुख्य फसलें चावल, गेहूं, दालें और अन्य खाद्यान्न और गन्ना हैं। बाराबंकी को तीन नदियों में घाघरा, गोमती और कल्याणी है। वहीं इस जिले में कुछ हस्तशिल्प और लघु उद्योग भी हैं। यहां कि यब भी मान्यता है कि नवाबों के शासनकाल के बाद से ही बाराबंकी बुनाई के लिए भी प्रसिद्ध है।
लोकसभा चुनाव 2024 : लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियां तोजी से शुरु हो चुकी हैं, लोकसभा संवैधानिक रूप से लोगों का सदन है साथ ही भारत की द्विसदनीय संसद का निचला सदन है, जिसमें उच्च सदन राज्य सभा है। वहीं लोकसभा चुनाव के मुखिया पद पर सभी की नजरें बनी हुई हैं, मगर देखना यह है कि कौन कितना दांव मारेगा यह तो अभी तय नहीं किया जा सकता हैं।
आपको बताते चले लोकसभा के सदस्य अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक वयस्क सार्वभौमिक मताधिकार और एक सरल बहुमत प्रणाली द्वारा चुने जाते हैं, और वे पांच साल तक या जब तक राष्ट्रपति केंद्रीय मंत्री परिषद् की सलाह पर सदन को भंग नहीं कर देते, तब तक वे अपनी सीटों पर बने रहते हैं। वहीं अगर देखा जाए तो लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की राजनीति की सबसे बड़ी अहमियत होती है, क्योंकि यूपी में बाकी राज्यों के मुकाबले सबसे अधिक यानि की 80 सीटें हैं।
बाराबंकी जिले का इतिहास
उत्तर प्रदेश की 80 सीटे में से बाराबंकी जिला राज्य के अवध क्षेत्र के मध्य भाग में स्थित है जिसका मुख्यालय बाराबंकी है इस जिले को ‘पूर्वांचल के प्रवेश द्वार’ के रूप में भी जाना जाता है, आपको बताते चले इस पावन भूमि को संतों और साधुओं की तपस्या स्थली होने का गौरव भी प्राप्त है। वहीं इस जिले के नामकरण को लेकर कई प्राचीन कथाएं भी हैं कहा जाता है कि इस पावन भूमि पर ‘भगवान बारह’ के पुनर्जन्म भी हुआ था। जिसके चलते इस जगह को ‘बानह्न्या’ के रूप में जाना जाने लगा, जो वर्तमान में बाराबंकी के नाम से प्रसिद्ध हैं। इस जिले का मुख्यालय दरियाबाद में 1858 ई. तक था, जिसे बाद में 1859 ई. में नवाबगंज में स्थानांतरित कर दिया गया था, जो बाद में बदल कर बाराबंकी के लोकप्रिय नाम से जाने जाना लगा।
जिले पर राजाओं का शासनकाल
बाराबंकी जिले को लेकर यह भी मान्यता है कि प्राचीन समय में यह जिला सूर्यवंशी राजाओं द्वारा शासित राज्य का हिस्सा था, जिसकी राजधानी अयोध्या थी। वहीं यह जिला चंद्रवंशी राजाओं के शासनकाल में बहुत लंबे समय तक रहा था। महाभारत युग के दौरान, यह जिला ‘गौरव राज्य’ का हिस्सा था, पांडव ने अपनी मां कुंती के साथ, कुछ समय घाघरा नदी के तट पर व्यतीत किया था। यह स्थान सूर्यवंशियों द्वारा शासित क्षेत्र का हिस्सा था।
दारियाबाद के नाम जाने जाना वाला यह जिला मोहम्मद शाह शारिकी की सेना के एक अधिकारी दरिआब खां द्वारा स्थापित किया गया था। जिसे अब बाराबंकी कहा जाता है। वहीं जिले के विस्तार के लिए अंग्रेजों द्वारा, तब दरियाबाद जिले में कुर्सी को जिला लखनऊ और हैदरगढ़ को जिला रायबरेली से जोड़ा गया था।
वहीं अगर ऐतिहासिक दस्तावेज़ों की माने तो महमूद ग़ज़नी के भाई सैय्यद सालार मसूद ने 1030 ई. में इस क्षेत्र पर आक्रमण किया था। उसी शताब्दी में मदीना के कुतुबुद्दीन गहा ने हिंदू रियासतों पर कब्जा कर लिया और फिर मुस्लिम प्रभुत्व स्थापित किया। महान मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान इस जिले को अवध और मानिकपुर सरकार के अधीन विभाजित किया गया था।
वहीं ब्रिटिश शासन के दौरान, कई राजाओं ने अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी और ऐसा करते हुए अपने जीवन का बलिदान दिया, राजा बलभद्र सिंह, चेहलारी, महान क्रांतिकारियों के साथ-साथ लगभग 1000 क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया, प्रथम युद्ध की आखिरी लड़ाई भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई दिसंबर 1858 ई. में इसी जिले में लड़ी गई थी।
बाराबंकी का पर्यटन व धार्मिक स्थल
- लोधेश्वर महादेव मंदिर (महादेवा)
- देवा शरीफ
- पारिजात वृक्ष (किन्तूर)
- कुंतेश्वर महादेव
- मेड़नदास बाबा (अटवा धाम)
- कोटवा धाम
- सिद्धेश्वर महादेव, सिद्धौर
- सूफी सन्त हाजी वारिस अली शाह का मजार
- मरकामऊ में पूर्णेश्वर महादेव का मंदिर
- श्री समर्थ स्वामी जगजीवनसाहेब की तपोस्थली कोटवाधाम
- सिद्धौर
- बदोसराय
- किन्तूर
- सत्रिका
- भिताली
- मसौली
जिले का बुनियादी उद्योग
बाराबंकी जिले का मुख्य व्यवसाय कृषि है। यहां कि मुख्य फसलें चावल, गेहूं, दालें और अन्य खाद्यान्न और गन्ना हैं। बाराबंकी को तीन नदियों में घाघरा, गोमती और कल्याणी है। वहीं इस जिले में कुछ हस्तशिल्प और लघु उद्योग भी हैं। यहां कि यब भी मान्यता है कि नवाबों के शासनकाल के बाद से ही बाराबंकी बुनाई के लिए भी प्रसिद्ध है।
सांसद सदस्य
1952 - मोहनलाल सक्सेना - (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1957 - स्वामी रामानंद शास्त्री - (स्वतंत्र राजनीतिज्ञ)
1957- राम सेवक यादव - (समाजवादी पार्टी)
1962 - राम सेवक यादव - (सोशलिस्ट पार्टी)
1967 - राम सेवक यादव - (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी)
1971 - रूद्र प्रताप सिंह - (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1977 - राम किंकर - (जनता पार्टी)
1980 - राम किंकर - (जनता पार्टी)
1984 - कमला प्रसाद रावत - (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1989 - राम सागर रावत - (जनता दल)
1991 - राम सागर रावत - (जनता पार्टी)
1996 - राम सागर रावत - (समाजवादी पार्टी)
1998 - बैजनाथ रावत - (बी जे पी)
1999 - राम सागर रावत - (समाजवादी पार्टी)
2004 - कमला प्रसाद रावत - (बहुजन समाज पार्टी)
2009 - पीएल पुनिया - (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
2014 - प्रियंका सिंह रावत - (बी जे पी)
2019 - उपेन्द्र सिंह रावत - (बी जे पी)
बाराबंकी का राजनीतिक सफर
- 1951-52 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के मोहन लाल सक्सेना रहे।
- साल 1957 में कांग्रेस के ही स्वामी रामानंद शास्त्री चुने गये। हालांकि इसी साल हुए उपचुनाव में सोशलिस्ट पार्टी रामसेवक यादव यहां से चुनाव जीते।
- 1962-1967 में राम सेवक यादव सोशलिस्ट पार्टी से सांसद रहे।
- साल 1971 में यह सीट फिर कांग्रेस के पास आ गयी जिसमें रूद्र प्रताप सिंह जीत हासिल किए।
- वहीं, 1977-1980 के लोकसभा चुनाव में यह भारतीय लोकदल और जनता पार्टी सेक्युलर से राम किंकर के पास चली गई।
- साल 1984 में ‘इंदिरा लहर’ के दौरान कमला रावत कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते।
- उसके बाद साल 1989, 1991 और 1996 में राम सागर रावत ने समाजवादी पार्टी से जीत हासिल की।
- साल 1998 में पहली बार बाराबंकी सीट भाजपा के पलरे में गई और बैजनाथ रावत यहां से सांसद रहे।
- साल 2004 में कमला रावत बसपा के टिकट पर सांसद बने।
- साल 2009 में कांग्रेस के पी.एल. पुनिया ने यहां से जीत हासिल की।
- 2014 में ‘मोदी लहर’ ने प्रियंका रावत ने जीत हासिल की थी।
- वहीं अगर बात करें 2019 की तो उपेन्द्र सिंह रावत बीजेपी से जीते।
जिले का जातीय समीकरण
बाराबंकी लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के सदस्यों के लिए आरक्षित है और यहां दलित आबादी अधिक होने के साथ-साथ कुर्मी प्रभाव भी काफी है यहां यादव बिरादरी के मतदाताओं की भी खासी तादाद है।